गाज माता व्रत 2025

महत्वपूर्ण जानकारी

  • गाज माता व्रत 2025
  • सोमवार, 16 सितंबर 2025
  • द्वितीया तिथि प्रारंभ: 15 सितंबर 2025 सुबह 11:48 बजे
  • द्वितीया तिथि समाप्त: 16 सितंबर 2025 दोपहर 12:35 बजे
  • ध्यान दें: गाज माता का व्रत भाद्रपद मास में किसी भी शुभ दिन किया जा सकता हैं अथवा भाद्रपद शुक्ला द्वितीया तिथि को करना शुभ माना जाता हैं।

गाज माता का व्रत भाद्रपद मास में किसी भी शुभ दिन किया जा सकता हैं अथवा भाद्रपद शुक्ला द्वितीया तिथि को करना शुभ माना जाता हैं। यदि किसी के पुत्र पैदा हुआ हो या पुत्र का विवाह हुआ हो तो उसी वर्ष भाद्रपद माह में किसी शुभ दिन को देखकर गाज का व्रत कर उजमन करना चाहिए।

गाज माता व्रत का पूजा विधान

चित्र में भील भीलनी के साथ एक लड़के का चित्र बनाते हैं। भीलनी के सिर पर टोकरीयाँ रखनी चाहिए। सात जगह चार-चार पूड़ी और हलवा रखकर उस पर कपड़ा व रुपये रख दें। एक जल के कलश पर सतिया बनाकर 7 दाने गेहूँ के हाथ में लेकर गाज की कहानी सुनें। जल का कलश हाथ में लेकर सूर्य भगवान को अर्ध्य देना चाहिए। इसके बाद सारी पूरी ओढ़नी पर रखकर सासुजी के पैर छूकर देवें। इसके बाद रात ब्राह्मणियों को भोजन कराकर दक्षिणा देकर स्वयं भोजन करें।

गाज माता व्रत की कथा

पुराने समय में एक राजा और रानी थे। राजा और रानी के कोई संतान नहीं थी इसलिए दोनों बड़े दुखी रहते थे। एक दिन रानी ने गाज माता से मन्नत मांगी की यदि मेरे सन्तान हो जायेगी तो मैं हलवा पुड़ी का भोग लगाउंगी। इसके बाद रानी गर्भवती हो गई। नवे महीनें में रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया परन्तु रानी गाज माता के हलवा पुड़ी का भोग लगाना भूल गई। बहुत समय हो गया पर रानी ने भोग नहीं लगाया, तब गाज माता क्रुद्ध हो गई। एक दिन रानी का बेटा पालने में सो रहा था। आँधी, लडके को पालने सहित उड़ा कर एक निसंतान भील भीलनी के घर के घर ले गई।

जब भील भीलनी जंगल से घर आये तो देखा उनके आँगन में पालने में लड़का सो रहा था। भील-भीलनी के कोई सन्तान न थी। भील भीलनी अत्यंत प्रसन्न हुए और लडके का पालन पोषण स्नेह से करने लगे। उस राज्य में एक धोबी था जो राजा और धोबी दोनों के कपड़े धोता था। जब वह राजा के घर आया तो देखा कि वहां पर सैनिक इधर-उधर दौड़ रहे थे। धोबी के पूछने पर सैनिक ने बताया, कि राजकुमार को गाज माता उठाकर ले गई। तब धोबी ने कहा मुझे राजा जी के पास लेकर चलो। धोबी ने राजा को बतलाया की एक भील के घर पर उड़कर एक बालक आया हैं। राजा ने भील को बुलवाया और पूछा ये बालक कहा से आया तब धोबी ने कहा मेरी पत्नी गाज माता का व्रत करती हैं गाज माता ने प्रसन्न हो हमें यह पुत्र दिया। तब रानी को याद आया की मैंने गाज माता के हलवे पुड़ी की प्रसाद बोला था, जो करना भूल गई। रानी ने विधिवत गाज माता का व्रत करने व दुगुना हलवा पुड़ी चढ़ाने का संकल्प लिया और कहा हे गाज माता ! यदि मेरा बेटा वापिस आ जायेगा तो मैं करूंगी। गाज माता ने प्रसन्न हो उसको उसका लड़का लौटा दिया तथा भील भीलनी को पुत्र दिया। राजा ने प्रसन्न हो भील भीलनी को बहुत सारी धन सम्पति दे दी। रानी ने गाज माता का व्रत उद्यापन कर हलवा पुड़ी का भोग लगाया।

हे गाज माता! जैसे तुमने भील दम्पत्ति को धन दौलत और पुत्र दिया तथा रानी का पुत्र वापिस ला दिया उसी तरह हे माता् सबको धन और पुत्र देकर सम्पन्न रखना।



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