पौष माह की कृष्ण पक्ष की एकादशी को सफला एकादशी कहते हैं। जैसे कि इस एकादशी के नाम से ही पता चलता है कि इसका व्रत करने से सारे कार्य सफल हो जाते है। सफला एकादशी का व्रत भगवान नारायण जी के लिए रखा जाता है। इस दिन विधिवत उनकी आराधना होती है।
सफला एकादशी के व्रत से व्यक्ति को जीवन में उत्तम फल की प्राप्ति होती है और वह जीवन का सुख भोगकर मृत्यु पश्चात विष्णु लोक को प्राप्त होता है। यह व्रत अति मंगलकारी और पुण्यदायी है।
सफला एकादशी पर, भक्त विभिन्न धार्मिक गतिविधियों जैसे उपवास, प्रार्थना और धार्मिक ग्रंथों को पढ़ना या सुनना शामिल होते हैं। "सफला" शब्द का अनुवाद "सफल" या "पूर्ण" होता है और ऐसा माना जाता है कि इस एकादशी का पालन करने से सफलता, खुशी और आध्यात्मिक विकास होता है।
भक्तों का मानना है कि सफला एकादशी पर व्रत रखकर और प्रार्थना और ध्यान के लिए खुद को समर्पित करके, वे भगवान विष्णु से आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं। उपवास में आम तौर पर एक निर्दिष्ट अवधि के लिए भोजन और पानी से परहेज करना शामिल होता है, विभिन्न क्षेत्रों में इसे मनाने के तरीके में कुछ भिन्नताएं होती हैं।
इस व्रत को करने वाले को प्रातः स्नान करके भगवान अच्युत की आरती करें तथा भोग लगावें। अगरबत्ती, नारियल, सुपारी, आँवला, अनार तथा लौंग से पूजन करें। दीपदान और रात्रि जागरण का बड़ा माहात्म्य है।
द्वादशी के दिन भगवान की पूजा के पश्चात कर्मकाण्डी ब्राह्मण को भोजन करवा कर जनेऊ एवं दक्षिणा देकर विदा करने के पश्चात भोजन करें।
राजा महिष्मत के चार बेटे थे। छोटा बेटा ल्युक बड़ा दुष्ट और पापी था। वह पिता के धन को कुकर्मो में नष्ट करता रहता था। दुःखी होकर राजा ने उसे देश निकाला दे दिया। परन्तु उसकी लूटपाट की आदत न छूटी। एक बार उसे तीन दिन भोजन नसीब नहीं हुआ। वह भोजन की तलाश में एक साधु की कुटिया पर पहुँच गया। उस दिन ‘सफला एकादशी’ थी। महात्मा ने उसका मीठी वाणी से सत्कार किया तथा खाने के लिए भोजन दिया।
महात्मा के इस व्यवहार से उसकी बुद्धि परिवर्तित हो गई। उसने सोचा मैं भी मनुष्य ही हूँ। कितना दुराचारी और पापी। वह साधु के चरणों पर गिर पड़ा। साधु ने उसे अपना चेला बना लिया। धीरे-धीरे उसका चरित्र निर्मल होता गया। अब उसमें कोई ऐब नहीं रहा। वह महात्मा की आज्ञा से ‘एकादशी’ का व्रत करने लगा। जब वह बिल्कुल बदल गया तो महात्मा ने उसके सामने अपना असली रूप प्रकट कर दिया। महात्मा के वेश में उसके सामने उसके पिता खड़े थे। ल्युक ने राज-काज संभालकर आदर्श प्रस्तुत किया। ल्युक आजीवन ‘सफला एकादशी’ का व्रत रखने लगा।