नंदा व्रत - क्या आप नंदा व्रत के बारे में जानते हैं?

महत्वपूर्ण जानकारी

  • नंदा व्रत, पौष, सप्तमी शुक्ल पक्ष
  • सोमवार, 06 जनवरी 2025
  • सप्तमी तिथि प्रारंभ: 05 जनवरी 2025 रात्रि 08:15 बजे
  • सप्तमी समाप्ति तिथि: 06 जनवरी 2025 को शाम 06:23 बजे

नंदा व्रत शिव को समर्पित है और यह माना जाता है कि देवी सती ने शिव को पति के रूप में पाने के लिए इस व्रत का पालन किया था। सती नंदा व्रत के अनुष्ठानों का पालन करती हैं और मिट्टी के शिवलिंग का निर्माण करती हैं और विधि पूर्वाक व्रत का पालन किया और भगवान शिव को पति के रूप में पाया। 

यह व्रत विशेष रूप से अच्छे पति या पत्नी पाने के लिए किया जाता है। देवी सती ने शिव को अपने पति के रूप में पाने के लिए इस व्रत का पालन किया था क्योंकि वह केवल उन्हें ही अपना पति बनाना चाहती थीं।

देवी सती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए नंदा व्रत किया। उन्होंने निम्नलिखित दिनों में बड़ी भक्ति और एकाग्र मन से घर पर विभिन्न खाद्य पदार्थों और फूलों के साथ भगवान शिव की पूजा की:

अश्विन मास:

  • प्रतिपदा, षष्ठी और एकादशी को भक्तिपूर्वक थोड़े भात और नमक से भगवान शिव का पूजन किया।
  • नमस्कार करके पूरे मास को उसी नियम से व्यतीत किया।

कार्तिक मास:

  • चतुर्दशी को मालपुओं से शिव की पूजा की और चिंतन में समय बिताया।

मार्गशीर्ष मास:

  • कृष्ण पक्ष की अष्टमी को तिल, जौ और चावल से शिव की पूजा की।
  • ज्योतिर्मय दीप दिखाकर या आरती करके दिन बिताया।

पौष मास:

  • शुक्ल पक्ष की सप्तमी को रात भर जागरण करके प्रातः काल खिचड़ी का नैवेद्य चढ़ाकर शिव की पूजा की।

माघ मास:

  • पूर्णिमा को रात भर जागकर सुबह नदी में नहाकर गीले वस्त्रों से भगवान शिव की पूजा की।

फाल्गुन मास:

  • कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को रात में जागरण करके चारों पहरों में शिव जी की विशेष पूजा की।

चैत्र मास:

  • शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को दिन-रात शिव का स्मरण किया।
  • ढाक के फूलों और दवनो से भगवान शिव की पूजा की।

वैशाख मास:

  • शुक्ल तृतीया को तिल का आहार करके नए जौ के भात से रुद्र देव की पूजा की।

जेष्ठ मास:

  • पूर्णिमा को रात में सुंदर वस्त्रों और भटकटैया के फूलों से शंकर जी की पूजा की।
  • निराहार रहकर माह व्यतीत किया।

आषाढ़ मास:

  • शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को काले वस्त्र और भटकटैया के फूलों से रुद्र देव का पूजन किया।

श्रावण मास:

  • शुक्ल पक्ष की अष्टमी और चतुर्दशी को यज्ञोपवित वस्त्रों और कुश की पवित्री से शिव की पूजा की।

भाद्रपद मास:

  • कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को नाना प्रकार के फूलों और फलों से शिव का पूजन किया।
  • चतुर्दशी को केवल जल का आहार किया।

सती ने सभी महीनों में भिन्न-भिन्न प्रकार के फूलों और उससे उत्पन्न अन्नों से शिव की पूजा की। वह पूरे महीने अत्यंत नियमित आहार लेकर केवल जप में लगी रहीं। सभी महीनों में सती दिन-रात शिव की आराधना में लीन रहती थीं।

अपने मानव रूप में सती विधि पूर्वक उत्तम व्रत का पालन करती थीं। इस प्रकार नंदा व्रत को पूर्ण करके, सती ने भगवान शिव में अनन्य भाव से एकाग्र चित्त होकर बड़े प्रेम से ध्यान किया और उस ज्ञान में निश्चल भाव से स्थित हो गईं।

नंदा व्रत की प्रक्रिया

यह व्रत शुक्ल पक्ष सप्तमी को, जो किसी भी हिंदू महीने में चंद्रमा के बढ़ते चरण के दौरान सातवां दिन होता है, विशेष रूप से फाल्गुन, चैत्र, आषाढ़ और श्रावण में मनाया जा सकता है। व्रत की प्रक्रिया निम्नलिखित है:

  • उपवास: व्रत के दिन सूर्योदय से अगले दिन सूर्योदय तक उपवास करना होता है।
  • शुद्धिकरण और पूजा: सूर्योदय से पहले स्वयं को शुद्ध करें और शिव की पूजा करें।
  • मंत्र जाप: प्रार्थना में ‘ओम नमः शिवाय’ मंत्र का जाप शामिल करें।
  • प्रसाद: शिव को बिल्व पत्र और सफेद रंग के फूल अर्पित करें। आप एक साधारण मीठा पकवान बनाकर उसे प्रसाद के रूप में चढ़ा सकते हैं।
  • व्रत के खाद्य पदार्थ: उपवास के दौरान फल या अन्य व्रत के खाद्य पदार्थ खा सकते हैं।
  • प्रार्थना: सुबह और शाम को प्रार्थना करें।
  • व्रत का समापन: व्रत अगली सुबह सूर्योदय के बाद समाप्त होता है। व्रत पूरा करने के बाद किसी भी तिथि को गरीब बच्चों या बुजुर्गों को अन्नदान करें।

नंदा व्रत की इस सरल प्रक्रिया का पालन करके भक्तजन शिव की कृपा प्राप्त करते हैं और अपने मनोवांछित जीवनसाथी की प्राप्ति करते हैं।









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