चित्रकूट धाम हिन्दूओं के लिए एक धार्मिक तीर्थ स्थान है जो कि भारत वर्तमान में भारत के दो राज्यों उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बीच बांटा हुआ है। यह स्थान भारत में स्थित धार्मिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व का एक शहर है। इस स्थान का वर्णन हिन्दू धार्मिक ग्रथों में भी किया गया है और कई मंदिरों और धार्मिक महत्व के लिए जाना जाता है।
चित्रकूट धाम मंदाकिनी नदी के किनारे पर बसा भारत के सबसे प्राचीन तीर्थस्थलों में से एक है। चित्रकूट धाम चारों ओर से विंध्य पर्वत श्रृंखलाओं और वनों से धिरा हुआ है, इसलिए इस स्थान को आश्चर्यो की पहाड़ी भी कहा जाता है। मंदाकिनी नदी के दोनों तरफ बने अनेकों घाट और मंदिरों में पूरे साल श्रद्धालुओं का आना-जाना लगा रहता है।
धार्मिक महत्वता
चित्रकूट धाम का धार्मिक महत्व इसलिए है कि माना जाता है कि भगवान राम, सीता और लक्ष्मण ने 14 वर्ष का वनवास में से 11 वर्ष चित्रकूट में ही रहे थे। इसी स्थान पर ऋषि अत्रि और सती अनसुइया ने तपस्या की थी। ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने चित्रकूट में ही सती अनसुइया के घर अपने-अपने अवतार के रूप में जन्म लिया था।
ऐसा कहा जाता है जब भगवान राम ने अपने पिता की श्रद्धा समारोह इस स्थान पर किया था जिसमें सभी देवी-देवता ने भाग लिया था। ऋषि भारद्वाज और वाल्मीकि ने भगवान राम को उनके वनवास में, इसी स्थान पर रहने की सलाह दी थी। कई संत महाकावियों ने जैसे - तुलसीदास, कालिदास ने अपने-अपने महाकाव्यों में चित्रकूट को उल्लेख बहुत खूबसूरती से वर्णन किया है।
चित्रकूट धाम में कई धार्मिक आकर्षण स्थान है जैसे - रामघाट, जानकी कुण्ड, कामदगिरि, सफटिक शिला, अनसुइया अत्रि आश्रम, गुप्त गोदावरी, हनुमान धारा, भरत मिलाप स्थान, भरत कुप, राम शाय्या इत्यादि।
रामधाट - मंदाकिनी नंदी के किनारे पर, एक लाईन से बने घाटों को रामघाट कहा जाता है। यह वह घाट है जहां पर भगवान राम नित्य स्नान के लिए आते थे।
जानकी कुण्ड - जानकी कुण्ड, राम घाट के ऊपर को स्थित है। यह वह स्थान है जहां पर माता सीता स्नान किया करती थी।
कामदगिरि - इस पवित्र पर्वत का काफी धार्मिक महत्व है। श्रद्धालु कामदगिरि पर्वत की 5 किलोमीटर की परिक्रमा कर, अपनी मनोकामनाएं पूर्ण होने की कामना करते हैं। जंगलों से घिरे इस पर्वत के तल पर अनेक मंदिर बने हुए हैं। भगवान राम को कामदाननाथजी के रूप में भी जाना जाता है, जिसका शाब्दिक अर्थ है सभी इच्छाओं को पूरा करना।
सफटिक शिला - जानकी कुण्ड से कुछ दूरी पर मंदाकिनी नदी के किनार ही यह शिला स्थित है। माना जाता है कि इस शिला पर सीता के पैरों के निशान मुद्रित हैं। कहा जाता है कि जब वह इस शिला पर खड़ी थीं, तो जयंत ( भगवान इन्द्रा का पुत्र था ) ने कौए रूप धारण कर उन्हें चोंच मारी थी।
अनसुइया अत्रि आश्रम - स्फटिक शिला से लगभग 4 किलोमीटर की दूरी पर घने वनों से घिरा यह एकान्त आश्रम स्थित है। इस आश्रम में अत्रि मुनी, अनुसुइया, दत्तात्रेयय और दुर्वासा मुनि की प्रतिमा स्थापित हैं।
गुप्त गोदावरी - चित्रकूट धाम से 18 किलोमीटर की दूरी पर गुप्त गोदावरी स्थित हैं। यहां दो गुफाएं हैं। एक गुफा चैड़ी और ऊंची है, जिसका प्रवेश द्वार संकरा होने के कारण इसमें आसानी से नहीं जाया जा सकता है। गुफा के अंत में एक छोटा तालाब है जिसे गोदावरी नदी कहा जाता है। दूसरी गुफा लंबी और संकरी है जिससे हमेशा पानी बहता रहता है। कहा जाता है कि इस गुफा के अंत में राम और लक्ष्मण ने दरबार लगाया था।
हनुमान धारा - हनुमान धारा पहाडी के शिखर से आता एक झरना है, जो एक तालाब में गिरता है। तालाब के सामने भगवान हनुमान की विशाल मूर्ति स्थिपित है। पहाड़ी के शिखर पर ही ‘सीता रसोई’ है। कहा जाता है भगवान राम ने हनुमान के लिए आराम करने के लिए बनाया था। जब हनुमान, लंका दहन करके यहां आये थे। यहां से चित्रकूट का सुन्दर दृष्य देखा जा सकता है।
भरत मिलाप - भरत मिलाप कामदगिरि में स्थित है जहां पर भरत मिलाप मंदिर है। यह वह स्थान है जहां पर भरत, भगवान राम से लिए मिलें थे और भगवान राम से अध्योया लौटने का आग्रह किया था।
भरत कुप - कहा जाता है कि, भगवान राम के राज्याभिषेक के लिए भरत ने, भारत की 5 पवित्र नदियों से जल एकत्रित किया था। परन्तु भगवान राम ने अयोध्या वापिस जाने से मना कर दिया था। तब अत्रि मुनि के परामर्श पर, भरत ने जल एक कूप में रख दिया था। इसी कूप को भरत कूप के नाम से जाना जाता है। भगवान राम को समर्पित यहां एक मंदिर भी है।
राम शाय्या - यह स्थान चित्रकूट और भरत कूप के बीच में स्थित है। यह वह स्थान है जहां पर भगवान राम और सीता, रात्रि में सोया करते थे।