यह श्लोक भगवद गीता, अध्याय 6, श्लोक 46 से है। यह संस्कृत में लिखा गया है और हिंदी में इसका अनुवाद इस प्रकार है:
तपस्विभ्योऽधिकोयोगी ज्ञानिभ्योऽपिमतोऽधिक:|
कर्मिभ्यश्चाधिकोयोगी तस्माद्योगीभवार्जुन || 45 ||
हिंदी अनुवाद है:
"हे अर्जुन! योगी तपस्वियों से श्रेष्ठ होता है, ज्ञानी पुरुषों से भी श्रेष्ठ माना जाता है, और कर्मकांड में लगे लोगों से भी अधिक श्रेष्ठ होता है। इसलिए तुम योगी बनो।"
व्याख्या विस्तार से:
भगवान श्रीकृष्ण इस श्लोक में अर्जुन को योग के महत्व को समझा रहे हैं। वे बताते हैं कि जीवन के विभिन्न मार्गों में योगी का स्थान सबसे ऊँचा होता है।
योगी तपस्वियों से श्रेष्ठ क्यों है?
- तपस्वी अपने शरीर और इंद्रियों को नियंत्रित करके कठोर तपस्या करता है, लेकिन केवल बाहरी तप करने से पूर्णता प्राप्त नहीं होती।
- योगी केवल इंद्रिय-दमन नहीं करता, बल्कि आत्म-ज्ञान और ध्यान से ईश्वर का साक्षात्कार भी करता है, इसलिए वह तपस्वी से श्रेष्ठ होता है।
योगी ज्ञानियों से श्रेष्ठ क्यों है?
- ज्ञानी केवल शास्त्रों का ज्ञान रखता है, लेकिन यदि वह उस ज्ञान को जीवन में लागू नहीं करता, तो वह अधूरा है।
- योगी न केवल ज्ञान प्राप्त करता है, बल्कि उस ज्ञान को ध्यान और साधना द्वारा अनुभव करता है। इसीलिए वह ज्ञानी से भी श्रेष्ठ है।
योगी कर्मयोगियों से श्रेष्ठ क्यों है?
- कर्मयोगी केवल कर्म करता है, लेकिन यदि उसका कर्म केवल लौकिक सफलता के लिए है, तो वह सीमित है।
- योगी हर कर्म को ईश्वर के अर्पण करता है और ध्यान, ज्ञान और निष्काम कर्म को मिलाकर कार्य करता है। इसलिए वह कर्मयोगी से भी श्रेष्ठ है।
संस्कृत शब्द का हिंदी में अर्थ:
- तपस्विभ्य - तपस्वियों से, कठोर तप करने वालों से।
- अधिक - श्रेष्ठ, महान।
- योगी - ध्यान, भक्ति, और आत्म-साक्षात्कार का अभ्यास करने वाला साधक।
- ज्ञानिभ्य - ज्ञानी पुरुषों से, जो केवल शास्त्रों और ज्ञान के मार्ग में लगे हुए हैं।
- अपि - भी।
- मतः - माना गया है, समझा जाता है।
- कर्मिभ्य - कर्मयोगियों से, जो केवल कर्म (कर्मकांड) में लगे रहते हैं।
- च - और।
- अधिक - श्रेष्ठ।
- योगी - योग का अभ्यास करने वाला।
- तस्मात् - इसलिए।
- योगी भव - योगी बनो, योग को अपनाओ।
- अर्जुन - हे अर्जुन!