श्री जगन्नाथ मंदिर हिन्दूओं का एक प्रसिद्ध मंदिर है, जो भगवान जगन्नाथ को समर्पित है। भगवान जगन्नाथ, भगवान विष्णु (श्री कृष्ण)का ही रूप है। श्री जगन्नाथ मंदिर पुरी, उड़ीसा, भारत में स्थित है। ‘जगन्नाथद्ध का अर्थ जगत के स्वामी होता है। इनकी नगरी ही जगन्नाथपुरी या पुरी कहलाती है।
श्री जगन्नाथ मंदिर हिन्दूओं का एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है तथा स्थल हिन्दूओं के ‘चार धाम’ तीर्थस्थलों में से एक है। जो भारत के चार प्रमुख स्थल है। अधिकांश हिंदू मंदिरों में पाए जाने वाले पत्थर और धातु के प्रतीक के विपरीत, जगन्नाथ की मूर्ति लकड़ी से बनी होती है और प्रथागत ढंग से हर बारह या उन्नीस वर्ष प्रति सटीक प्रतिकृति द्वारा बदलती है।
यह मंदिर अपनी वार्षिक रथ यात्रा या रथ उत्सव के लिए प्रसिद्ध है। इसमें मंदिर के तीनों मुख्य देवता, भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भ्राता बलभद्र और बहन सुभद्रा, तीन अलग-अलग भव्य और सुसज्जित रथों में विराजमान होकर नगर की यात्रा को निकलते हैं। मध्य-काल से ही यह उत्सव हर्षोल्लस के साथ मनाया जाता है। इसके साथ ही यह उत्सव भारत के सभी वैष्णव कृष्ण मंदिरों में मनाया जाता है, एवं यात्रा निकाली जाती है।
यह मंदिर सभी हिंदुओं और विशेषकर वैष्णव परंपराओं में पवित्र है। कई महान संत, जैसे आदि शंकराचार्य, रामानंद और रामानुजा मंदिर के निकट से जुड़े थे। रामानुज ने मंदिर के पास एमार मठ की स्थापना की और गोवर्धन मठ, जो चार शंकराचार्यों में से एक की सीट भी यहां स्थित है। यह गौड़ीय वैष्णव संप्रदाय के अनुयायियों के लिए भी महत्वपूर्ण है, जिनके संस्थापक चैतन्य महाप्रभु, जगन्नाथ के प्रति आकर्षित थे और कई वर्षों तक पुरी में रहते थे।
मंदिर का उद्गम
गंग वंश के हाल ही में अन्वेषित ताम्र पत्रों से यह ज्ञात हुआ है, कि वर्तमान मंदिर के निर्माण कार्य को कलिंग राजा अनंतवर्मन चोडगंग देव ने आरम्भ कराया था। मंदिर के जगमोहन और विमान भाग इनके शासन काल (1078 - 1148) में बने थे। फिर सन 1197 में जाकर ओडिआ शासक अनंग भीम देव ने इस मंदिर को वर्तमान रूप दिया था।
मंदिर में जगन्नाथ अर्चना सन 1558 तक होती रही। इस वर्ष अफगान जनरल काला पहाड़ ने ओडिशा पर हमला किया और मूर्तियां तथा मंदिर के भाग ध्वंस किए और पूजा बंद करा दी, तथा तीनों देवाओं को चिलिका झील मे स्थित एक द्वीप मे गुप्त रखा गया। बाद में, रामचंद्र देब के खुर्दा में स्वतंत्र राज्य स्थापित करने पर, मंदिर और इसकी मूर्तियों की पुनर्स्थापना हुई।
मंदिर से जुडी कथा
श्री जगन्नाथ मंदिर के बारे में स्ंकद पुराण, ब्रह्मा पुराण औ अन्य पुराणों में भी मिलता है। एक परंपरागत कथा के अनुसार, भगवान जगन्नाथ की इंद्रनील या नीलमणि से निर्मित मूल मूर्ति, एक अगरु वृक्ष के नीचे मिली थी। यह इतनी आकर्षित करने वाली थी, कि धर्म ने इसे पृथ्वी के नीचे छुपाना चाहा। मालवा नरेश इंद्रद्युम्न को स्वप्न में यही मूति दिखाई दी थी। राजा ने कड़ी तपस्या की और तब भगवान विष्णु ने उसे बताया कि वह पुरी के समुद्र तट पर जाये और उसे एक लकड़ी का लठ्ठा मिलेगा। उसी लकड़ी से वह मूर्ति का निर्माण कराये। राजा ने ऐसा ही किया और उसे लकड़ी का लठ्ठा मिल भी गया। उसके बाद राजा को भगवान विष्णु और विश्वकर्मा जीप बढ़ई कारीगर और मूर्तिकार के रूप में उसके सामने उपस्थित हुए। किंतु उन्होंने यह शर्त रखी, कि वे एक माह में मूर्ति तैयार कर देंगे, परन्तु तब तक वह एक कमरे में बंद रहेंगे और राजा या कोई भी उस कमरे के अंदर नहीं आये। माह के अंतिम दिन जब कई दिनों तक कोई भी आवाज नहीं आयी, तो उत्सुकता वश राजा ने कमरे में झांका और वह वृद्ध कारीगर द्वार खोलकर बाहर आ गया और राजा से कहा, कि मूर्तियां अभी अपूर्ण हैं, उनके हाथ अभी नहीं बने थे। राजा के अफसोस करने पर, मूर्तिकार ने बताया, कि यह सब दैववश हुआ है और यह मूर्तियां ऐसे ही स्थापित होकर पूजी जायेंगीं। तब वही तीनों जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियां मंदिर में स्थापित की गयीं।