कबीरा खड़ा बाज़ार में, मांगे सबकी खैर,
ना काहू से दोस्ती,न काहू से बैर।
अनुवाद:
"कबीर बाजार में खड़े हैं, सबकी भलाई की कामना करते हुए।
कोई गठबंधन या दुश्मनी नहीं, उसे किसी से कोई नुकसान नहीं होगा।"
सार:
कबीर के दोहे में सार्वभौमिक सद्भावना और निष्पक्षता का गहरा संदेश झलकता है। वह दुनिया के बीच खड़ा है, किसी के साथ बंधन या संघर्ष किए बिना सभी के लिए अच्छाई और कल्याण की कामना करता है। यह मतभेदों और पूर्वाग्रहों से परे, वैराग्य, समानता और सभी प्राणियों के प्रति दयालु दृष्टिकोण के महत्व को रेखांकित करता है।