"ओम नमो भगवते वासुदेवाय धन्वन्तरये, अमृत कलश हस्ताय।
सर्वामय विनाशय सर्वरोग निवारणाय, त्रैलोक्य पतये त्रैलोक्य नाथाय।
श्री महाविष्णवे स्वरूपाय श्री धन्वंतरि स्वरूपाय, श्री श्री औषध चक्र नाराणाय नमः ।।"
"हे भगवान वासुदेव, धन्वन्तरि, अमृत कलश को धारण करने वाले।
सम्पूर्ण रोगों का नाश करने वाले, त्रैलोक्य के स्वामी, त्रैलोक्य के नाथ।
श्री महाविष्णु के स्वरूप, श्री धन्वंतरि के स्वरूप, श्री औषध चक्र के स्वामी, नारायण को मेरा नमन।"
यह मंत्र वैदिक संस्कृति में एक प्रमुख मंत्र है, जिसमें भगवान धन्वन्तरि की पूजा की जाती है। धन्वन्तरि भगवान रोगों के उपचार के लिए अमृत कलश को धारण करते हैं। यह मंत्र समस्त लोकों के स्वामी भगवान विष्णु को भी स्तुति देता है, जो सृष्टि के संरक्षक के रूप में जाने जाते हैं। औषध चक्र के स्वामी नारायण को नमस्कार किया जाता है, जो समस्त बीमारियों के निवारण में सक्षम हैं।