गोपिका विरह गीत
एहि मुरारे कुंजविहरे एहि प्रणत जन बन्धो
हे माधव मधुमथन वरेण्य केशव करुणा सिंधो
रास निकुंजे गुन्जित नियतम भ्रमर शतम किल कांत
एहि निभ्रित पथ पंथ
त्वमहि याचे दर्शन दानम हे मधुसूदन शान्त
सुन्यम कुसूमासन मिह कुंजे सुन्यम केलि कदम्ब
दीनः केकि कदम्ब
मृदु कल ना दम किल सवि षदम रोदित यमुना स्वंभ
नवनीरजधर श्यामल सुंदर चंद्रा कुसुम रूचि वेश
गोपी गण ह्रिदेयेश
गोवर्धन धर वृंदावन चर वंशी धर परमेश
राधा रंजन कान्स निशुदन प्रणति सातवक चरने निखिल निराश्रये शरने
एहि जनार्दन पीतांबर धर कुंजे मन्थर पवने
"गोपिका विरह गीतम" एक लोकप्रिय भक्ति गीत है जो भगवान कृष्ण से गोपियों (ग्वालों) के अलगाव का वर्णन करता है। यह कृष्ण के प्रति गोपियों के गहन प्रेम और लालसा को चित्रित करता है जब वह उन्हें छोड़ कर अपने घर वृन्दावन लौट जाते हैं। गोपियाँ दुःखी हैं और प्रेम और विरह के गीत गाती हैं।
यह गीत अक्सर हिंदू धर्म में भक्ति परंपरा का हिस्सा है और विभिन्न कृष्ण-केंद्रित त्योहारों और भक्ति समारोहों के दौरान गाया जाता है। यह गोपियों और भगवान कृष्ण के बीच गहरे भावनात्मक और आध्यात्मिक संबंध को दर्शाता है।