श्री विश्वकर्मा अष्टकम - निरञ्जनो निराकारः निर्विकल्पो मनोहरः

महत्वपूर्ण जानकारी

  • यह भजन दिव्य वास्तुकार और शिल्पकार भगवान विश्वकर्मा को श्रद्धांजलि है। इसमें आठ श्लोक हैं, जिनमें से प्रत्येक में भगवान विश्वकर्मा की विशेषताओं और अभिव्यक्तियों के विभिन्न पहलुओं की प्रशंसा की गई है। रचनात्मकता, कौशल और सफलता के लिए आशीर्वाद मांगने वाले भक्तों द्वारा अक्सर इस भजन का पाठ किया जाता है। यह भगवान विश्वकर्मा को परम निर्माता और सभी अस्तित्व के स्रोत के रूप में स्वीकार करता है।

निरञ्जनो निराकारः निर्विकल्पो मनोहरः ।
निरामयो निजानन्दः निर्विघ्नाय नमो नमः ॥ १॥
 
अनादिरप्रमेयश्च अरूपश्च जयाजयः ।
लोकरूपो जगन्नाथः विश्वकर्मन्नमो नमः ॥ २॥

नमो विश्वविहाराय नमो विश्वविहारिणे ।
नमो विश्वविधाताय नमस्ते विश्वकर्मणे ॥ ३॥

नमस्ते विश्वरूपाय विश्वभूताय ते नमः ।
नमो विश्वात्मभूथात्मन् विश्वकर्मन्नमोऽस्तु ते ॥ ४॥

विश्वायुर्विश्वकर्मा च विश्वमूर्तिः परात्परः ।
विश्वनाथः पिता चैव विश्वकर्मन्नमोऽस्तु ते ॥ ५॥
 
विश्वमङ्गलमाङ्गल्यः विश्वविद्याविनोदितः ।
विश्वसञ्चारशाली च विश्वकर्मन्नमोऽस्तु ते ॥ ६॥
 
विश्वैकविधवृक्षश्च विश्वशाखा महाविधः ।
शाखोपशाखाश्च तथा तद्वृक्षो विश्वकर्मणः ॥ ७॥
 
तद्वृक्षः फलसम्पूर्णः अक्षोभ्यश्च परात्परः ।
अनुपमानो ब्रह्माण्डः बीजमोङ्कारमेव च ॥ ८॥

इति विश्वकर्माष्टकं सम्पूर्णम्





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