जय शंकर पार्वतीपते मृडशम्भो शशिखण्डमण्डन ।
मदनान्तक भक्तवत्सल! प्रियकैलास दयासुधांबुधे ॥१॥
सदुपायकथास्वपण्डितो हृदये दुःखशरेण खण्डितः।
शशिखण्डशिखण्डमण्डनं शरणं यामि शरण्यमीश्वरम् ॥२॥
महतः परितःप्रसर्पतः तमसो दर्शनभेदिनो भिदे।
दिननाथ इव स्वतेजसा हृदयव्योम्नि मनागुदेहि नः॥३॥
न वयं तव चर्मचक्षुषा पदवीमप्युपवीक्षितुं क्षमाः।
कृपयाऽभयदेन चक्षुषा सकलेनेश विलोकयाशु माम् ॥४॥
त्वदनुस्मृतिरेव पावनी स्तुतियुक्ता न हि वाक्तुमीश सा।
मधुरं हि पयः स्वभावतो ननु कीदृक् सितशर्करयान्वितम् ॥५॥
सविषोप्यमृतायते भवान् शवमुण्डाभरणोऽपि पावनः।
भव एव भवान्तकस्सतां समदृष्टिर्विषमेक्षणॊपि सन् ॥६॥
अपि शूलधरो निरामयो दृढवैराग्यधरोऽपि रागवान्।
अपि भैक्षचरो महेश्वरश्चरितं चित्रमिदं हि ते प्रभो ॥७॥
वितरत्यभिवाञ्छितं दृशा परिदृष्टः किल कल्पपादपः ।
हृदये स्मृत एव धीयते नमतेऽभिष्टफलप्रदो भवान् ॥८॥
सहसैव भुजंगपाशवान् विनिगृह्णाति न यावदन्तकः।
अभयं कुत तावदाशु मे गतजीवस्य पुनः किमौषधैः ॥९॥
सविषैरिव भीमपन्नगैर्विषयैरेभिरलं परिक्षतं ।
अमृतैरिव संभ्रमेण मामभिषिञ्चाशु दयावलोकनैः ॥१०॥
मुनयो बहवोऽत्र धन्यतां गमिता स्वाभिमतार्थदर्शिनः।
करुणाकर येन तेन मामवसन्नं ननु पश्य चक्षुषा ॥११॥
प्रणमाम्यथ यामि चापरं शरणं कं कृपणाभयप्रदम्।
विरहीव विभो प्रियामयं परिपश्यामि भवन्मयं जगत् ॥१२॥
बहवो भवतानुकंपिताः किमितीशान न मानुकंपसे।
दधता किमु मन्दराचलं परमाणुः कमठेन दुर्धरः ॥१३॥
अशुचिर्यदिमाऽनुमन्यसे किमिदं मूर्ध्नि कपालदाम ते।
उत शाठ्यमसाधुसंगिनं विषलक्ष्मासि न किं द्विजिह्वधृक्॥१४॥
क्व दृशं विदधामि किं करोम्यनुतिष्ठामि कथं भयाकुलः।
क्वनु तिष्ठसि रक्षरक्षमामयि शम्भो शरणागतोऽस्मि ते ॥१५॥
विलुठाम्यवनौ किमाकुलः किमुरोहन्मि शिरः छिनद्मि वा।
किमु रोदिमि रारटीमि किं कृपणं मां न यदीक्षसे प्रभो ॥१६॥
शिव सर्वग शिव शर्मद प्रणतो देव दयां कुरुष्व मे।
नम ईश्वर नाथ दिक्पते पुनरेवेश नमो नमोऽस्तु ते ॥१७॥
शरणं तरुणेन्दुशेखर शरणं मे गिरिराजकन्यका।
शरणं पुनरेव तावुभौ शरणं नान्यदवैमि दैवतम् ॥१८॥
उपमन्युकृतं स्तवोत्तमं जपतश्शंभुसमीपवर्तिः।
अभिवाञ्छितभाग्यसंपदः परमायुः प्रददाति शंकरः ॥१९॥
उपमन्युकृतं स्तवोत्तमं प्रजपेद्यस्तु शिवस्य सन्निधौ।
शिवलोकमवाप्य सोऽचिरात् सह तेनैव शेवेन मोदते ॥२०॥
"उपमन्यु कृत शिव स्तोत्रम" हिंदू धर्म के प्रमुख देवताओं में से एक, भगवान शिव को समर्पित एक भजन है। ऐसा माना जाता है कि इसकी रचना ऋषि और भगवान शिव के भक्त उपमन्यु ने की थी। इस स्तोत्र का पाठ भक्तों द्वारा भगवान शिव का आशीर्वाद और कृपा पाने और अपनी भक्ति व्यक्त करने के लिए किया जाता है।
यह स्तोत्र भगवान शिव की स्तुति में रचा गया है और उनका आशीर्वाद और कृपा चाहता है। इसका श्रेय ऋषि उपमन्यु को दिया जाता है।
इस स्तोत्र का प्रत्येक श्लोक भगवान शिव के प्रति गहरी भक्ति और श्रद्धा व्यक्त करता है, उनके विभिन्न गुणों और गुणों पर प्रकाश डालता है। भक्त परमात्मा से आध्यात्मिक मार्गदर्शन, सुरक्षा और आशीर्वाद पाने के लिए ऐसे स्तोत्र का पाठ करते हैं।