मंदार पर्वत - समुद्र मंथन से जुड़ी कहानियाँ

महत्वपूर्ण जानकारी

  • मंदार पर्वत: समुद्र तट से जुड़ी कहानियाँ पता: बौंसी, बिहार 813104।
  • निकटतम रेलवे स्टेशन: मंदार हिल से लगभग 50 किलोमीटर की दूरी पर भागलपुर स्टेशन।
  • निकटतम हवाई अड्डा: मंदार हिल से लगभग 270 किलोमीटर की दूरी पर पंत नगर हवाई अड्डा।

मन्दार पर्वत भारत के बिहार राज्य के बाँका ज़िले में स्थित है, जिसकी ऊँचाई लगभग 700 फीट (210 मीटर) है। यह पर्वत धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह भागलपुर शहर से लगभग 45 किलोमीटर दक्षिण में भागलपुर-दुमका राज्य राजमार्ग पर स्थित है। मन्दार पर्वत की चोटी पर दो प्रमुख मंदिर हैं—एक हिंदू मंदिर और एक जैन मंदिर। इसकी विशेषता इसे हिंदू और जैन धर्म का तीर्थस्थल बनाती है, और प्रत्येक वर्ष मकर संक्रांति के अवसर पर यहाँ विशाल मेला लगता है।

मन्दार पर्वत का पौराणिक महत्व

हिंदू पौराणिक कथाओं में इसे "मन्दराचल" कहा गया है। माना जाता है कि समुद्र मंथन के समय देवताओं और असुरों ने इस पर्वत का उपयोग मथनी के रूप में किया था। इस मंथन से 14 रत्न, अमृत और हलाहल विष की उत्पत्ति हुई थी। मंथन के दौरान नाग वासुकी ने रस्सी के रूप में देवताओं और असुरों के लिए सेवा की थी। इसी पर्वत के पास स्थित 'पापहरनी' सरोवर में भगवान लक्ष्मी और विष्णु का मंदिर है। मकर संक्रांति के अवसर पर यहाँ स्नान करने से सभी पापों का नाश होता है, ऐसा माना जाता है।

मधुसूदन की कथा

मन्दार पर्वत से जुड़ी एक कथा के अनुसार, मधु और कैटभ नामक दो राक्षसों से परेशान होकर भगवान विष्णु ने हजारों वर्षों तक युद्ध किया। इस युद्ध में भगवान विष्णु ने कैटभ का वध कर दिया और मधु के सिर को धड़ से अलग कर दिया। लेकिन मधु का धड़ उत्पात मचाता रहा। तब विष्णु ने उसे मन्दार पर्वत पर रखकर अपने पैरों से दबा दिया, जिससे मधु का अंत हुआ। इस कारण भगवान विष्णु को 'मधुसूदन' भी कहा जाता है। आज भी मन्दार पर्वत की चोटी पर भगवान विष्णु के चरण चिन्ह मौजूद हैं, जो भक्तों के लिए श्रद्धा का केंद्र है।

जैन धर्म में मन्दार पर्वत का महत्व

मन्दार पर्वत जैन धर्म के लिए भी अत्यंत पवित्र है। यहाँ जैन धर्म के 12वें तीर्थंकर श्री वासुपूज्य नाथ ने निर्वाण प्राप्त किया था। जैन धर्मावलंबियों का मानना है कि उनके चरण चिन्ह पर्वत पर आज भी मौजूद हैं। पर्वत के चारों ओर नाग वासुकी के घर्षण के चिह्न आज भी देखे जा सकते हैं, जिन्हें समुद्र मंथन की कहानी से जोड़ा जाता है।

प्राचीन अवशेष और मंदिर

मन्दार पर्वत पर कई प्राचीन मूर्तियों, शिलालेखों और मंदिरों के अवशेष मिलते हैं। यहाँ की चट्टानों पर सैकड़ों साल पुरानी प्रतिमाएँ और गुफाएँ मौजूद हैं, जो इस स्थान के ऐतिहासिक महत्व को दर्शाती हैं। कालिदास के "कुमारसंभव" में भी इस पर्वत का उल्लेख मिलता है, जहाँ उन्होंने विष्णु के पदचिह्नों का वर्णन किया है।

पर्यटन और धार्मिक स्थल

मन्दार पर्वत पर चढ़ने के लिए चट्टानों को काटकर 400 से अधिक सीढ़ियाँ बनाई गई हैं, जो पर्यटकों और श्रद्धालुओं को चोटी तक पहुँचने में मदद करती हैं। इस क्षेत्र में प्राकृतिक सौंदर्य के साथ-साथ धार्मिक महत्व भी है, जो यहाँ आने वाले पर्यटकों को आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करता है।

मकर संक्रांति और धार्मिक आयोजन

मन्दार पर्वत के पास स्थित पापहरनी सरोवर में मकर संक्रांति के अवसर पर हर वर्ष एक विशाल मेला आयोजित होता है। इस पर्वत के धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व के कारण यहाँ हर साल हजारों श्रद्धालु स्नान और दर्शन के लिए आते हैं। कहा जाता है कि मकर संक्रांति के दिन यहाँ स्नान करने से कुष्ठ रोग भी ठीक हो जाता है। इस सरोवर के मध्य स्थित मंदिर में भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की मूर्तियाँ विराजमान हैं।

मन्दार पर्वत धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व का केंद्र है, जो न केवल हिंदू और जैन धर्म के अनुयायियों के लिए पवित्र स्थल है, बल्कि अपने प्राचीन अवशेषों और प्राकृतिक सुंदरता के लिए भी जाना जाता है। इसका समुद्र मंथन की कथा से संबंध और भगवान विष्णु एवं जैन तीर्थंकर वासुपूज्य की उपस्थिति इसे एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल बनाती है। अगर आप बिहार के बांका ज़िले की यात्रा करते हैं, तो मन्दार पर्वत की यात्रा अवश्य करें और इसके धार्मिक और प्राकृतिक महत्व का अनुभव करें।



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