लोहडी उत्तर भारत के एक प्रसिद्ध त्योहार है विशेषकर भारत के राज्य पंजाब का लोक त्योहार है। लोहड़ी त्योहार के बारे में कई महत्व और किंवदंतियां हैं ऐसा माना जाता है कि यह त्योहार शीतकालीन संक्रांति के गुजरने का प्रतीक है। लोहड़ी त्योहार सर्दियों के अंत का प्रतीक माना जाता है। भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी क्षेत्र में लोगों द्वारा लंबे दिनों और उत्तरी गोलार्ध में सूर्य की यात्रा का पारंपरिक स्वागत है। लोहड़ी का त्योहार हिन्दू त्योहार मंकर संक्रान्ति से एक दिन पहले मनाया जाता है। लोहड़ी शीतकालीन संक्रांति के बाद लंबे दिनों के आगमन का उत्सव है। आमतौर पर लोहड़ी का त्योहार हर साल 12 या 13 जनवरी को मनाया जाता है।
लोहड़ी मुख्यतः पंजाबी वर्ग का त्योहार है। इस दिन रात्रि में खुले स्थान में परिवार और आस-पड़ोस के लोग मिलकर आग के किनारे घेरा बना कर बैठते हैं। इस समय रेवड़ी, मूंगफली और पाॅपकाॅर्न आदि खाए जाते हैं। लोहड़ी त्योहार अब भारत के लगभग सभी राज्य में मनाया जाता है, जिसमें पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली विशेष है।
त्योहार का प्राचीन महत्व यह है कि यह सर्दियों की फसल के मौसम का उत्सव है, और यह पंजाब क्षेत्र से जुड़ा हुआ है। एक लोकप्रिय लोककथा लोहड़ी को दुल्ला भट्टी की कहानी से जोड़ती है। कई लोहड़ी गीतों का केंद्रीय विषय दुल्ला भट्टी की कथा है। दुल्ला भट्टी पिता एक जमीदार थे, जो मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल के दौरान पंजाब में रहते थे। पंजाबी लड़कियों को जबरन मध्य पूर्व के दास बाजार में बेचने के लिए ले जाने से बचाने के लिए उन्हें पंजाब में एक नायक के रूप में माना जाता था। जिन लोगों को उन्होंने बचाया उनमें दो लड़कियां सुंदरी और मुंदरी थीं, जो धीरे-धीरे पंजाब की लोककथाओं का विषय बन गईं। लोहड़ी उत्सव के एक भाग के रूप में, बच्चे ‘दुल्ला भट्टी’ नाम के साथ लोहड़ी के पारंपरिक लोक गीत गाते हुए घरों में घूमते हैं। एक व्यक्ति गाता है, जबकि अन्य प्रत्येक पंक्ति को जोर से ‘हो!’ बोलते है। गाना समाप्त होने के बाद, घर के वयस्कों से अपेक्षा की जाती है कि वे युवाओं की गायन मंडली को रेवड़ी, मूंगफली और पाॅपकाॅर्न आदि और पैसे दें। लोहड़ी फसल के मौसम और धूप के दिनों की शुरुआत का भी प्रतीक है।