मोहिनी एकादशी एक हिंदू पवित्र दिन है, जो वैशाख मास के शुक्ल पक्ष में पड़ती है या ऐसा कहा जा सकता है कि वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोहिनी एकादशी कहा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि यह दिन सभी पापों को नष्ट करने वाला उत्तम दिन है।
मोहिनी एकादशी व्रत की कथा पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, समुद्र मंथन के समय जब देवताओं और असुरों के बीच अमृत के बटवारें के लिए लड़ाई हो रही थी, तब भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण किया। मोहिनी, अपनी अद्वितीय सुंदरता और मोहकता से असुरों को भ्रमित कर अमृत का पात्र देवताओं को दे दिया, जिससे वे अमर हो गए।
मोहिनी एकादशी का व्रत न केवल आध्यात्मिक लाभ देता है, बल्कि यह मन को शांति और आत्मशुद्धि का अनुभव भी कराता है। इसलिए, यह व्रत हर आयु के लोगों द्वारा किया जाता है, जो धर्म और आस्था में विश्वास रखते हैं।
धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा था कि वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का क्या नाम है? श्रीकृष्ण कहा कि हे राजेश्वर! इस एकादशी का नाम मोहिनी है। मैं तुम्हें ऐसी कथा कहता हूँ, जिसे गुरू वसिष्ठ ने श्री रामचंद्रजी से कही थी। एक समय श्रीराम बोले कि , हे गुरुदेव! कोई ऐसा व्रत बताइए, जिससे समस्त पाप और दुरूख का नाश हो जाए। मैंने सीताजी के वियोग में बहुत दुरूख भोगे हैं।
महर्षि वशिष्ठ बोले- हे राम! वैशाख मास में जो एकादशी आती है उसका नाम मोहिनी एकादशी है। इसका व्रत करने से मनुष्य सब पापों तथा दुरूखों से छूटकर मोहजाल से भी मुक्त हो जाता है। मोह किसी भी चीज का हो, मनुष्य को कमजोर ही करता है. इसलिए मोह से छुटकारा पाने की कामना रखने वाले इंसान के लिए मोहिनी एकादशी का व्रत बहुत उत्तम है।
एक राजा के पांच पुत्र थे। सुमना, द्युतिमान, मेधावी, सुकृत तथा धृष्ट्बुद्धि। धृष्ट्बुद्धि पांचवा पुत्र था, वह बड़ा ही व्याभिचारी, दुर्जन संग, बड़ों का अपमान करने वाला था। जुये आदि दुर्व्यसनों में उसकी बड़ी आसक्ति थी। वह वेश्याओं से मिलने के लिये लालायित रहता और अन्याय के मार्ग पर चलकर पिता का धन बरबाद किया करता। राजा ने उससे तंग आकर उसे अपने राज्य से बाहर निकाल दिया। वह वनों में जाकर रहने लगा और वह दर दर भटकने लगा। एक दिन पूर्व जन्म के संस्कार वश वह भटकते हुए भूख-प्यास से व्याकुल वह महर्षि कौँन्डिन्य के आश्रम जा पहुँचा। ऋषि ने उसे सत्संगति का महत्त्व समझाया। इससे उस धृष्ट्बुद्धि का हृदय परिवर्तित हो गया। वह अपने किये पाप कर्मों पर पछताने लगा। तब महर्षि कौँन्डिन्य ने उसे वैशाख शुक्ल मोहिनी एकादशी का व्रत करने की सलाह दी। व्रत के प्रभाव से धृष्ट्बुद्धि की बुद्धि निर्मल हो गई। इस प्रकार वह अपने पापों तथा दुःखों से मुक्त हो गया था। आज भी यह व्रत श्रद्धा के साथ किया जाता है।