हिंदुओं के लिए रिप शब्द का प्रयोग क्यों नहीं किया जाना चाहिए?

आजकल सोशल साइट्स का दौरा है और जब किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो उसे श्रद्धांजली देने के लिए ‘रिप’ शब्द का प्रयोग किया जाता है। लोग बिना कुछ सोचे-समझे ही इस शब्द का प्रयोग करते है। ‘रिप’ शब्द सनातन धर्म का शब्द ही नहीं है।

फिर भी इस शब्द के मतलब से अनजान हम लोग अपनी तरफ से ‘रिप’ शब्द का प्रयोग कर मृत व्यक्ति की शांति मांग रहे होते है। परन्तु सनातन धर्म में इस शब्द का प्रयोग नहीं करना चाहिए। आज हम आपको बताते हैं कि इस बात का अर्थ यह नहीं होता है।

सोशल साइट्स पर आजकल लोग बिना कुछ सोचे समझे ही किसी व्यक्ति के मरने पर रिप रिप की रट लगा देते हैं खासकर फेसबुक ट्विटर या व्हाट्सएप ग्रुप में। शब्दों में धार्मिक भेदभाव तो नहीं किया जा सकता लेकिन रिप शब्द का मतलब सिर्फ मुस्लिम और ईसाइयों के लिए ही सिद्ध होता है ना कि हिंदुओं के लिए।

आइये जानते हैं की सनातन धर्म को मनाने वालों के लिए रिप शब्द का इस्तेमाल क्यों नहीं करना चाहिए और इसकी जगह क्या शब्द इस्तेमाल करें।

रिप का अर्थ हिंदी में ‘शांति से आराम करो’ या फिर ‘शांति में आराम करो’। ‘शांति से आराम करो’ और ‘ईश्वर आपकी आत्मा को शांति दे’, इन दोनों पंक्तियों में जमीन आसमान का अंतर है, हमें इन शब्दों में फर्क समझना चाहिए।

शांति से आराम करो उन लोगों के लिए अपनाया जाता है जिन्हें कब्र में दफनाया गया है क्योंकि ईसाइयों और मुस्लिमों की मान्यताओं के अनुसार जब जजमेंट डे यानी कयामत का दिन आएगा तब सारे मृत पुनर्जीवित हो जायेगें। इसलिए मुस्लिम और ईसाई धर्म में कहा जाता हैं कि कयामत के दिन के इंतजार में ‘शांति से आराम करो’।

ईसाई और मुस्लिम शरीर में यकीन रखते हैं मानना है कि कयामत के दिन फिर से जी उठेंगे लेकिन हिंदू इसके विपरीत पुनर्जन्म मे यकीन रखते हैं और आत्मा को अमर मानते हैं हिंदू धर्म के अनुसार शरीर नश्वर है यानी एक ना एक दिन इसे नष्ट होना ही है इसी वजह से हिंदू शरीर को जला दिया जाता है हिंदुओं का मानना है कि मरने के बाद शरीर से आत्मा ही निकल गई तो शरीर किस काम का। इसलिए शांति से आराम करने का प्रश्न ही नहीं उठता है। ऐसे में यहां रिप शब्द का प्रयोग करना व्यर्थ है।

गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने आत्मा व शरीर के बारे में बताया हैं-

वासांसि जीर्णानि यथा विहाय
नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि |
तथा शरीराणि विहाय जीर्णा
न्यन्यानि संयाति नवानि देही
।। 2.22

भावार्थः जैसे व्यक्ति पहने हुए कपड़ों को उतारता है और नए कपड़े पहनता है, वैसे ही मृत्यु के समय आत्मा अपने घिसे-पिटे शरीर से बाहर निकलती है और एक नए में प्रवेश करती है।
गीता में यह भी कहा गया है कि

नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः ।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः।।
2.23

भावार्थः इस आत्मा को शस्त्र नहीं काट सकते, इसको आग नहीं जला सकती, इसको जल नहीं गला सकता और वायु नहीं सुखा सकता।

संसार के किसी भी वस्तु से हम आत्मा को छू भी नहीं सकते और ध्यान देने योग्य बात यह है कि जल वायु अग्नि तीनों ही हिंदू धर्म में देवता माने गए हैं। हिंदू धर्म के अनुसार मनुष्य अपने कर्मो के फल स्वरूप या तो मोक्ष प्राप्ति कर लेता है या फिर आत्मा नया शरीर को धारण कर लेती है।
सनातन धर्म में कहा जाता है-

‘ऊँ शांति सदगति’

अर्थातः ईश्वर आत्मा को शांति दे और मोक्ष की प्राप्ति हो।

 



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