देव दीपावली हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण दिन होता है। देव दीपावली का देवताओं की दिवाली और देवताओं के प्रकाश का त्योहार भी कहा जाता है। देव दीपावाली हिन्दू कैलेण्डर सबसे शुभ मास कार्तिक की पूर्णिमा पर पड़ता है। देव दीपावली दिवाली के पंद्रह दिन बाद होती है।
देव दीपावली के दिन गंगा नदी के तट पर दीपक जलायें जाते है। यह त्योहार पूरे भारत में मनाया जाता है परन्तु वाराणसी और हरिद्वार में विशेष होता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन सभी देवता गंगा में स्नान करने के लिए पृथ्वी पर उतरते है। देव दीपावली को त्रिपुरा पूर्णिमा स्नान के रूप में भी मनाया जाता है।
देव दिवाली त्योहार के दिन वाराणसी में स्थित गंगा के सभी घाटों में लाखों दीपक प्रज्वालित किए जाते है जिसको देखने के लिए लाखों भक्त आते है। इस दिन वाराणसी के घाटों में गंगा आरती में शामिल होने के लाखों लोग आते हैं। इस दृश्य को देखने के लिए भारत ही नहीं अपितु विदेशों से भी लोग आते है। वाराणसी में इस दिन गंगा महोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है।
गंगा महोत्सव वाराणसी में एक पर्यटक केंद्रित त्योहार है, जो हर साल पांच दिनों में मनाया जाता है, जो अक्टूबर और नवंबर के महीनों के दौरान प्रबोधनी एकादशी से शुरू होता है कार्तिक पूर्णिमा तक चलता है। इस दिन वाराणसी की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को देखा जा सकता है।
देव दीपावली के दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नाम के राक्षस का वध किया था। त्रिपुरासुर ने अपने आतंक से मनुष्यों, ऋषि मुनियों और देवी-देवताओं को त्रस्त कर रखा था। त्रिपुरासुर के आंतक से परेशान होकर सभी देवी देवता भगवान शिव के पास गए। त्रिपुरासुर के अंत हेतु भगवन शिव से निवेदन किया। भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का अंत कर दिया। जिसका आभार व्यक्त प्रकट किया और सभी देवी-देवता ने भगवान शिव की प्रिय नगरी काशी में अनेकों दीपक जलाकर खुशी मनाई थीं। यही कारण है कि प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास की पूर्णिमा पर देव दीपावली मनाई जाती है।
देव दीपावली का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है। इस दिन देवता पृथ्वी पर आकर गंगा स्नान करते हैं। इसलिए इस दिन गंगा में स्नान करना चाहिए और दीप दान करना चाहिए। इससे सभी देवता प्रसन्न होते है और अपनी कृपा दृष्टि करते हैं।