प्राचीन काल में देवताओं के राजा इंद्र के द्वारा एक बड़ा पाप किया गया था, जिससे समाज में अराजकता और असंतुलन फैल गया। इस पाप के कारण भगवान महादेव (शिव) ध्यान में लीन हो गए, और माता पार्वती अकेली हो गईं।
माता पार्वती का मातृत्व भाव जागृत हो चुका था और उनके भीतर एक बच्चे की चाह बढ़ने लगी थी। अपने इस अकेलेपन और मातृत्व की इच्छा को पूरा करने के लिए, माता पार्वती ने एक बच्चे को स्वयं बनाने का निर्णय लिया। उन्होंने अपने शरीर से निकले चंदन के लेप को मिट्टी में मिलाकर एक बच्चे का आकार दिया और उसमें प्राण फूंक दिए। इस प्रकार, एक छोटे बालक का जन्म हुआ, जिसे माता पार्वती ने "विनायक" नाम दिया।
कुछ सालों बाद जब विनायक लगभग दस वर्ष के थे, भगवान शिव अपने गणों के साथ वापस लौटे। उस समय माता पार्वती स्नान कर रही थीं और उन्होंने विनायक से कहा, “यह सुनिश्चित करो कि कोई भी भीतर न आए।” विनायक ने अपने माता के आदेश का पालन करते हुए द्वार पर पहरा दिया। चूंकि विनायक ने शिव को कभी नहीं देखा था, इसलिए जब भगवान शिव वहाँ पहुँचे, तो विनायक ने उन्हें रोक दिया।
शिव के गणों और देवताओं ने विनायक को रोकने का प्रयास किया, लेकिन वह अडिग रहा। यह देखकर भगवान शिव क्रोधित हो गए, और अपने त्रिशूल से विनायक का सिर काट दिया।
जब माता पार्वती स्नान के बाद बाहर आईं और अपने प्रिय पुत्र को बिना सिर के पड़ा देखा, तो वे अत्यंत क्रोधित हो गईं। उनका क्रोध इतना भयानक था कि सृष्टि विनाश की ओर बढ़ने लगी। शिव ने उन्हें शांत करने की कोशिश की, लेकिन माता पार्वती नहीं मानीं।
महादेव ने अपने पुत्र विनायक का सिर एक श्राप के कारण भी काटा था। भगवान शिव ने सूर्य देव के अहंकार और अपने कर्तव्य का पालन न करने के कारण उन्हें मृत्यु दंड दिया था। इससे दुखी होकर ऋषि कश्यप ने, जो सूर्य देव के पिता थे, शोक में भगवान शिव को श्राप दिया कि भविष्य में आपको भी अपने ही पुत्र का सिर काटना पड़ेगा और पुत्र वियोग का दुःख सहना पड़ेगा।
माता पार्वती के इस प्रचंड क्रोध से सृष्टि के विनाश की संभावना को देखते हुए भगवान ब्रह्मा और विष्णु ने महादेव से विनती की कि वे माता को शांत करें। महादेव ने तुरंत अपने अनुचरों इंद्र और नंदी को उत्तर दिशा में भेजा और कहा कि जो भी पहला जीव मिले और स्वेच्छा से अपना सिर दे, उसका सिर विनायक पर लगाया जाएगा।
इंद्र और नंदी को उत्तर दिशा में एक हाथी मिला, जिसका नाम गजअसुर था। गजअसुर एक बुद्धिमान और महान हाथी था, जिसे महादेव ने एक बार वरदान दिया था कि वह हमेशा कैलाश पर रहेगा। गजअसुर ने अपने सिर को सहर्ष इंद्र को सौंप दिया।
भगवान शिव ने गजअसुर के सिर को विनायक के शरीर पर लगा दिया और इस प्रकार विनायक का पुनर्जन्म हुआ। उनका नाम बदलकर गणेश रखा गया, जिसका अर्थ है "गणों के ईश्वर"। महादेव ने गणेश को वरदान दिया कि वे प्रथम पूज्य होंगे, अर्थात किसी भी धार्मिक या शुभ कार्य की शुरुआत गणेश की पूजा से होगी।