वरूथिनी एकादशी व्रत कथा

वरूथिनी एकादशी : 

हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का बहुत धार्मिक महत्व माना गया है. बैसाख माह के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को वरूथिनी एकादशी कहा जाता है. वरूथिनी एकादशी को भगवान विष्णु और उनके के अवतार कृष्ण भगवान की पूजा अर्चना की जाती है . पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, वरूथिनी एकादशी का व्रत करने वाले जातक को पुण्य और स्वर्ग की प्राप्ति होती है और सारे दुखों का नाश होता है. एकादशी की व्रत कथा की भी काफी महिमा है. इस कथा को सुनने मात्र से ही पुण्य फल की प्राप्ति होती है, आइए पढ़ते हैं वरूथिनी एकादशी की व्रत कथा...

वरूथिनी एकादशी व्रत कथा:

प्राचीन समय की बात है जब नर्मदा नदी के किनारे मान्धाता नाम के राजा की राज्य था. राजा की रुचि हमेशा धार्मिक कार्यों में रहती थी. वह हमेशा पूजा-पाठ में लीन रहते थे. एक बार राजा जंगल में तपस्या में लीन थे तभी एक जंगली भालू आया और राजा का पैर चबाने लगा. राजा इस घटना से तनिक भी भयभीत नहीं हुए और उनके पैर को चबाते हुए भालू राजा को घसीटकर पास के जंगल में ले गया. तब राजा मान्धाता ने भगवान विष्णु से प्रार्थना करने लगे. राजा की पुकार सुनकर भगवान विष्णु प्रकट ने चक्र से भालू को मार डाला.

राजा का पैर भालू खा चुका था और वह इस बात को लेकर वह बहुत परेशान हो गए. दुखी भक्त को  देखकर भगवान विष्णु बोले- 'हे वत्स! शोक मत करो. तुम मथुरा जाओ और वरुथिनी एकादशी का व्रत रखकर मेरी वराह अवतार मूर्ति की पूजा करों. उसके प्रभाव से पुन: सुदृढ़ अंगो वाले हो जाओगे. इस भालू ने तुम्हें जो काटा है, यह तुम्हारे पूर्व जन्म का अपराध था. भगवान की आज्ञा मानकर राजा ने मथुरा जाकर श्रद्धापूर्वक यह व्रत किया. इसके प्रभाव से वह सुंदर और संपूर्ण अंगो वाला हो गया.







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