भगवद गीता अध्याय 6, श्लोक 1

श्रीभगवानुवाच।
अनाश्रितः कर्मफलं कार्यं कर्म करोति यः ।
स संन्यासी च योगी च न निरग्निर्न चाक्रियः ॥1॥

अर्थ: परम प्रभु ने कहा! वे मनुष्य जो कर्मफल की कामना से रहित होकर अपने नियत कर्मों का पालन करते हैं वे वास्तव में संन्यासी और योगी होते हैं, न कि वे जो अग्निहोत्र यज्ञ संपन्न नहीं करते अर्थात अग्नि नहीं जलाते और शारीरिक कर्म नहीं करते।

संस्कृत शब्द का हिंदी में अर्थ:

श्रीभगवानुवाच–परम् भगवान ने कहा; 
अनाश्रितः-आश्रय न लेकर; 
कर्मफलं-कर्म-फल; 
कार्यम्-कर्त्तव्य; 
कर्म-कार्यः 
करोति-निष्पादन; 
यः-वह जो; 
सः-वह व्यक्ति; 
संन्यासी-संसार से वैराग्य लेने वाला; 
-और; 
योगी-योगी; 
-और; 
 - नहीं; 
निः-रहित; 
अग्नि:-आग; 
-नहीं; 
-भी; 
अक्रियः-निष्क्रिय।।





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