श्रीभगवानुवाच।
अनाश्रितः कर्मफलं कार्यं कर्म करोति यः ।
स संन्यासी च योगी च न निरग्निर्न चाक्रियः ॥1॥
अर्थ: परम प्रभु ने कहा! वे मनुष्य जो कर्मफल की कामना से रहित होकर अपने नियत कर्मों का पालन करते हैं वे वास्तव में संन्यासी और योगी होते हैं, न कि वे जो अग्निहोत्र यज्ञ संपन्न नहीं करते अर्थात अग्नि नहीं जलाते और शारीरिक कर्म नहीं करते।
श्रीभगवानुवाच–परम् भगवान ने कहा;
अनाश्रितः-आश्रय न लेकर;
कर्मफलं-कर्म-फल;
कार्यम्-कर्त्तव्य;
कर्म-कार्यः
करोति-निष्पादन;
यः-वह जो;
सः-वह व्यक्ति;
संन्यासी-संसार से वैराग्य लेने वाला;
च-और;
योगी-योगी;
च-और;
न - नहीं;
निः-रहित;
अग्नि:-आग;
न-नहीं;
च-भी;
अक्रियः-निष्क्रिय।।