उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत् |
आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मन: ॥5॥
अर्थ: मन की शक्ति द्वारा अपना आत्म उत्थान करो और स्वयं का पतन न होने दो। मन जीवात्मा का मित्र और शत्रु भी हो सकता है।
उद्धरेत्-उत्थान;
आत्मना-मन द्वारा;
आत्मानम्-जीव;
न-नहीं;
आत्मानम्-जीव;
अवसादयेत्-पतन होना;
आत्मा-मन;
एव–निश्चय ही;
हि-वास्तव में;
आत्मनः-जीव का;
बन्धुः-मित्र;
आत्मा-मन;
एव-निश्चय ही;
रिपुः-शत्रु;
आत्मनः-जीव का