भगवद गीता अध्याय 6, श्लोक 23

यह श्लोक भगवद गीता, अध्याय 6, श्लोक 23 से है। यह संस्कृत में लिखा गया है और हिंदी में इसका अनुवाद इस प्रकार है:

तं विद्याद् दु:खसंयोगवियोगं योगसञ्ज्ञितम् |
स निश्चयेन योक्तव्यो योगोऽनिर्विण्णचेतसा​ || 23||

हिंदी अनुवाद है:

"श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि उस अवस्था को जानो जो दु:ख के संयोग से अलगाव का कारण बनती है और उसे "योग" कहा जाता है। इसे दृढ़ निश्चय और निराश न होने वाले मन से साधना चाहिए।"

इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण ने योग की वास्तविक परिभाषा बताई है। वह बताते हैं कि योग केवल शरीर की क्रियाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि यह वह मानसिक और आत्मिक स्थिति है जिसमें व्यक्ति अपने जीवन के दुखों से अलगाव प्राप्त करता है। यहाँ "दु:खसंयोग" का अर्थ है जीवन में आने वाले दु:ख और कष्ट, जिनसे बचने का एकमात्र मार्ग योग की साधना है।

संस्कृत शब्द का हिंदी में अर्थ:

तं विद्याद्: इसे जानो।
दु:खसंयोगवियोगं: दु:ख के संयोग (मिलन) से वियोग (अलगाव)।
योगसञ्ज्ञितम्: यह योग कहलाता है।
स निश्चयेन: उसे दृढ़ निश्चय के साथ।
योक्तव्यो: साधना करनी चाहिए।
योग: योग।
अनिर्विण्णचेतसा: निराश या हताश न होने वाले मन से।



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