गढ़मुक्तेश्वर हिन्दुओं के लिए प्राचीन तीर्थ स्थल है। गढ़मुक्तेश्वर भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के हापुड जिला में स्थित एक धार्मिक स्थान है। इस स्थान का गढ़मुक्तेश्वर इसलिए कहा जाता है क्योंकि भगवान शिव के गणों को पिशाच योनि से मुक्ति मिली थी। जो कि गंगा नदी के किनारे स्थित है तथा यह भारत के राष्ट्रीय राज मार्ग 9 पर पड़ता है। यह स्थान हिन्दुओं के लिए संस्कृतिक व धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। गढ़मुक्तेश्वर पितरों के लिए पिंडदान के लिए भी प्रसिद्ध है। गढ़मुक्तेश्वर पर कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर गंगा स्नान पर्व उत्तर भारत का सबसे बड़ा धार्मिक मेला आयोजित किया जाता है।
गढ़मुक्तेश्वर का सबसे प्रसिद्ध घाट है, ब्रजघाट। ब्रजघाट घाट हिन्दू धर्म उतना ही पवित्र माना जाता है जितना कि हरिद्वार में हर की पौड़ी, वाराणसी के घाट, प्रयागराज के घाट, अयोध्या और ऋषिकेश के घाट आदि। इसलिए गढ़मुक्तेश्वर स्थान का नाम हिन्दु के तीर्थो स्थलों में आता है।
गढ़मुक्तेश्वर का विवरण हिन्दुओं के पुराणों जैसे भागवत पुराण, शिवपुराण और महाभारत जैसे ग्रथों में मिलता है। भागवत पुरण व महाभारत के अनुसार यह कुरु की राजधानी हस्तिनापुर का भाग था। गढ़मुक्तेश्वर में भगवान शिव का एक मंदिर है जिसमें प्राचीन कारखण्डेश्वर शिवलिंग स्थिपित है। शिवपुराण के अनुसार ‘गढ़ मुक्तेश्वर’ का प्राचीन नाम ‘शिव वल्लभ’ (शिव का प्रिय) है। महर्षि दुर्वासा द्वारा शिवगणों को पिशाच होने का शाप दिया था। शाप से मुक्ति के लिए महर्षि दुर्वासा जी ने उन्हें खाण्डव वन में भगवान शिव की तपस्या करने को कहा था। खाण्डव वन जो अब गढ़मुक्तेश्वर के नाम से जानते है। गणों द्वारा तपस्या करने से भगवान शिव खुश हुए थे। गढ़मुक्तेश्वर में भगवान मुक्तीश्वर (शिव) के दर्शन करने से अभिशप्त शिवगणों की पिशाच योनि से मुक्ति मिली थी, इसलिए यह तीर्थ ‘गढ़ मुक्तीश्वर’ (गणों की मुक्ति करने वाले ईश्वर) के नाम से विख्यात हो गया।
पुराण में भी उल्लेख है- गणानां मुक्तिदानेन गणमुक्तीश्वरः स्मृतः।
गढ़मुक्तेश्वर में अपने पितरों का पिंडदान और तर्पण किया जाता है। गढ़मुक्तेश्वर पितरों का पिंडदान करने के बाद गया श्राद्ध करने की आवश्कता नहीं होती है। पांडवों ने महाभारत के युद्ध में मारे गये अपने पितरों का पिंडदान गढ़मुक्तेश्वर में ही किया था। यहां कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी को पितरों की शांति के लिए दीपदान करने की परम्परा भी रही है सो पांडवों ने भी अपने पितरों की आत्मशांति के लिए मंदिर के समीप गंगा में दीपदान किया था तथा कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी से लेकर पूर्णिमा तक यज्ञ किया था। तभी से यहां कार्तिक पूर्णिमा पर मेला लगना प्रारंभ हुआ।
गढ़ मुक्तेश्वर में गंगा किनारे कई मंदिर स्थित है जिसमें देवी गंगा को समर्पित मुक्तेश्वर महादेव मंदिर, गंगा मंदिर, मीराबाई की रेती, गुदडी मेला, बृज घाट, झारखंडेश्वर महादेव, कल्याणेश्वर महादेव का मंदिर आदि दर्शनीय स्थल हैं। गढ़मुक्तेश्वर में केवल बृजघाट में ही गंगा स्नान किया जाता है। यहाँ के नवनिर्मित गंगा घाट, फव्वारा लेजर शो, घंटाघर, गंगा आरती, प्राचीन हनुमान मंदिर, वेदांत मंदिर, अमृत परिषर मंदिर आकर्षण के मुख्य केंद्र हैं।