होलाष्टक हिन्दू धर्म में महत्वूपर्ण दिनों को कहा जाता है। होलाष्टक हिन्दू धर्म में फाल्गुन मास में आता है। ग्रेगोरियन कैलेंडर में फरवरी व मार्च का महीना होता है। होलाष्टक दो शब्दों से मिलकर बना है, होली और अष्टक यानि 8 दिनों का पर्व होता है। होली उत्सव से पहले के आठ दिनों को होलाष्टक कहा जाता है। ऐसा कहा जा सकता है कि होली के उत्सव के आने की पूर्व सूचना होलाष्टक से ही प्राप्त होती है। होलाष्टक में होली उत्सव के साथ होलिका दहन की तैयारियां भी शुरू हो जाती है।
होलाष्टक के दिनों में कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है। ऐसा कहा जा सकता है कि होलाष्टक के 8 दिनों को अशुभ माना जाता है। इसलिए इस दौरान कोई भी विवाह, सगाई, गृह प्रवेश, नए घर की खरीदारी, वाहन की खरीदारी, भूमि पूजन, नया व्यवसाय की शुरुआत आदि शुभ कार्य नहीं किये जाते है।
होलाष्टक में कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है। इससे सम्बंधित प्रसिद्ध पौराणिक कथा है जिससे क्यों शुभ कार्य नहीं किये जाते है होलाष्टक के दिनों में -
पौराणिक कथा के अनुसार इन्द्रदेव के कहने पर कामदेव ने भगवान शिव की तपस्या भंग कर दी थी और इससे नाराज होकर भगवान शिव अपने तीसरे नेत्र से प्रेम के देवता कामदेव को फाल्गुन की अष्टमी तिथि के दिन ही भस्म कर दिया था। कामदेव की पत्नी रति ने 8 दिनों तक शिव की आराधना की और कामदेव को पुनर्जीवित करने की प्रार्थना की जिसे भगवान शिव ने स्वीकार कर लिया। इसी परंपरा के कारण यह 8 दिन शुभ कार्यों के लिए वर्जित माना जाता है।
पौराणिक कथा के अनुसार, राजा हिरण्यकश्यप ने अपने बेटे प्रहलाद को भगवान विष्णु की भक्ति से दूर करने के लिए इन आठ दिनों में कठिन यातनाएं दी थीं। आठवें दिन हिरण्यकश्यप की बहन होलिका जिसे यह वरदान प्राप्त था कि वह आग से नहीं जल सकती है। परन्तु जब होलिका, भक्त प्रहलाद को गोद में लेकर आग में बैठ गई थी और जल गई थी। भगवान विष्णु की कृपा से भक्त प्रहलाद आग से बच गए थे। इसलिए इन 8 दिनों में कोई भी शुभ काम नहीं किए जाते।