सबरीमाला एक हिन्दू तीर्थस्थल है जो कि दुनिया का दूसरा सबसे बड़े वार्षिक तीर्थो में से एक है, जहां हर साल करीब 45-50 लाख श्रद्धालु आते हैं। यह हिन्दूओं का तीर्थस्थल है जोकि पेरियार टाइगर रिजर्व, केरल के पतनमथिट्टा जिले के पेरुनाद ग्राम पंचायत के पश्चिमी घाट पर्वत श्रृंखला में स्थित है। सबरीमाला के चारों ओर की पहाड़ियों में मंदिर मौजूद हैं जबकि आसपास के इलाकों में कई जगहों पर कार्यात्मक और अस्थिर मंदिर मौजूद हैं, जैसे निलाकल, कालकाती, और पुरानें मंदिरों व करीमला अवशेष शेष पहाड़ियों पर आज भी स्थित हैं।
यह अय्यप्पन का एक प्राचीन मंदिर है जो कि 18 पहाड़ियों के बीच स्थित है। इस मंदिर को सस्था और धर्मसस्था भी कहा जाता है। यह मंदिर समुद्र के स्तर से ऊपर 1260 मीटर की ऊंचाई पर पहाड़ी के किनारे पर स्थित है, और पहाड़ों और घने जंगलों से घिरा हुआ है। घने जंगल, (पेरियार टाइगर रिजर्व), मंदिर के आसपास पौंगवानम के रूप में जाना जाता है सबरीमाला में मंदिर अय्यप्पन का एक प्राचीन मंदिर है जिसे सास्ता और धर्मसास्त भी कहा जाता है। 12वीं शताब्दी में, पांडलम वंश के एक राजकुमार मणिकंदन ने सबरीमाला मंदिर पर ध्यान दिया और दिव्य बन गया। मणिकंदन अय्यप्पन का अवतार था।
इस मंदिर का 1950 में पुनःनिमार्ण किया गया था। 1950 में ईसाई कट्टरपंथियों ने इस मंदिर में आग लगा दि थी जिससे यह मंदिर पूरी तरह नष्ट हो गया था। मंदिर के देवता की पहली मूर्ति जोकि पत्थर से बनी थी उसको पंचोला मूर्ति से प्रतिस्थापित किया गया था जो पांच धातुओं के मिश्र से बनी थी।
सबरीमाला मुख्य रूप से हिंदुओं द्वारा किए गए तीर्थ यात्रा से जुड़ा हुआ है। सबरीमाला तीर्थयात्रियों को आसानी से पहचाना जा सकता है, क्योंकि वे काले या नीले कपड़े पहनते हैं। वे तीर्थयात्रा के पूरा होने तक दाढ़ी नहीं करते, और उनके माथे पर धब्बेदार विभूती या चंदन का पेस्ट करते हैं।
मंदिर सभी वर्ग के लिए खुलता है, यह मंदिर सभी जाति, पंथ या धर्म का स्वागत करता है, लेकिन मंदिर में 10 से 50 वर्ष के आयु वर्ग में महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध हैं। मंदिर के पास एक जगह है जो सन्निधनम के पूर्व में है, जिसे वावर् (एक सूफी और भगवान अयप्पा के दोस्त) को समर्पित किया जाता है जिसे ‘वावरुनदा’ कहा जाता है, धार्मिक सद्भाव का प्रतीक है। इस मंदिर की सबसे अनोखी बात यह है कि यह मंदिर पूरे साल नहीं खुला रहता है, यह केवल मंडलपूजा (लगभग 15 नवंबर से 26 दिसंबर), मकरविलक्कु या ‘मकर संक्रांति’ (14 जनवरी) और महाविष्णु संक्रांति (14 अप्रैल) के दिनों में ही पूजा के लिए खुलता है। ऐसा कहा जाता है कि तीर्थयात्रियों को सबरीमला जाने से पहले उनके दिमाग को शुद्ध करने के लिए 41 दिनों के लिए उपवास करना पड़ता है। यात्रा के दौरान तीर्थयात्री को एक विशेष माला जो रूद्राक्ष या तुलसी से बनती है, धारण करनी होती है। इस यात्रा के कुछ सख्त नियम है जिसका पालन करना अनिवार्य है जैसे शाकाहारी आहार ग्रहण करना, ब्रह्मचार्य का पालन करना, मादक पदार्थों का सेवन ना करना, बालों और नाखूनों ना काटाना, दूसरों की मदद करने के लिए अधिकतम कोशिश करना, एक दिन में दो बार स्नान करेंगे और स्थानीय मंदिरों में नियमित रूप से जायेगें और केवल सादे काले या नीले रंग के पारंपरिक कपड़े पहनेंगे। भगवा रंगीन कपड़े संन्यासी द्वारा पहने जाते हैं। यात्रा के लिए जंगल के मुश्किल रास्ते के माध्यम से ले जाया जाता है क्योंकि वाहन केवल पंपा तक जा सकते हैं।
1991 में केरल उच्च न्यायालय ने सबरीमाला शार्नेस में 10 वर्ष की उम्र से अधिक उम्र के और 50 वर्ष से कम उम्र के महिलाओं की प्रवेश प्रतिबंधित कर दी क्योंकि वे मासिक धर्म की उम्र के थे। वर्तमान में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय के फैसले की समीक्षा करने और महिलाओं के प्रवेश की अनुमति देने के लिए एक याचिका की है। अक्टूबर 2017 तक, सुप्रीम कोर्ट संविधान पीठ का हवाला दे रहा है ताकि प्रतिबंध से संबंधित निर्णय लिया जा सके।