पाटन देवी मंदिर एक हिन्दू मंदिर है जो कि भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के जिला बलरामुर से करीब 25 किलोमीटर दूरी पर स्थित तुलसीपुर में है। यह मंदिर नेपाल सीमा के पास है। पाटन देवी मंदिर को मां पाटेश्वरी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर नाम माता के 51 शक्तिपीठों में आता है। भारत में माता के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है।
पाटन देवी मंदिर का दूसरा नाम देवी पातालेश्वरी भी है। ऐसा माना जाता है कि माता सीता रामायण काल में निंदा से परेशान होकर इस स्थान पर धरती माता की गोद में बैठकर पाताल में समा गई थी। इस पातालगामी स्थान पर पातालेश्वरी माता का मंदिर स्थापित किया गया था।
ऐसा कहा जाता है कि पहले मंदिर के गर्भगृह में कोई प्रतिमा नहीं थी। मध्य में चांदी का एक चबुतरा है, जहां माना जाता है कि माता पाताल में समाई थी। इसी चबुतरें के नीचे एक सुरंग है जिसके बारें में कहा जाता है कि यह सुरंग पाताल तक जाती है। बाद में कई राजाओं द्वारा मंदिर जिर्णोद्वार किया गया था तथा चांदी के चबुतर के पीछे माता की 10 भुजाओं वाली मूर्ति की स्थापाना की कई थी।
मंदिर के उत्तरी दिशा में सूर्यकुण्ड है। जहां महाभारत काल में सूर्यपुत्र कर्ण ने परशुराम जी से धनुर्वेद की शिक्षा ली थी। ऐसी धाराणा है कि इस कुण्ड में स्नान करने से कुष्ठ रोग व चर्मरोग ठीक हो जाते है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी सती ने उनके पिता दक्षेस्वर द्वारा किये यज्ञ कुण्ड में अपने प्राण त्याग दिये थे, तब भगवान शंकर देवी सती के मृत शरीर को लेकर पूरे ब्रह्माण चक्कर लगा रहे थे इसी दौरान भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 51 भागों में विभाजित कर दिया था, जिसमें से सती का वाम स्कन्ध पाटम्बर अंग (बायां कंधा) इस स्थान पर गिरा था। इसलिए यह स्थान देवी पाटन के नाम से प्रसिद्ध है। यहीं भगवान शिव की आज्ञा से महायोगी गुरु गोरखनाथ ने सर्वप्रथम देवी की पूजा-अर्चना के लिए एक मठ का निर्माण कराकर स्वयं लम्बे समय तक जगजननी की पूजा करते हुए साधनारत रहे। इस प्रकार यह स्थान सिद्ध शक्तिपीठ के साथ-साथ योगपीठ भी है।
पाटन देवी मंदिर में सभी त्यौहार मनाये जाते है विशेष कर दुर्गा पूजा और नवरात्र के त्यौहार पर विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। इन त्यौहारों के दौरान, कुछ लोग भगवान की पूजा के प्रति सम्मान और समर्पण के रूप में व्रत (भोजन नहीं खाते) रखते हैं। त्यौहार के दिनों में मंदिर को फूलो व लाईट से सजाया जाता है। मंदिर का आध्यात्मिक वातावरण श्रद्धालुओं के दिल और दिमाग को शांति प्रदान करता है।