श्रीखंड महादेव, भगवान शिव के निवास स्थान में से एक है और इसे हिंदुओं का तीर्थ स्थान माना जाता है। श्रीखंड महादेव भारत के राज्य हिमाचाल प्रदेश में स्थित है। यह स्थान भगवान शिव के भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान है। इसकी यात्रा को ‘श्रीखंड महादेव कैलाश यात्रा’ कहा जाता है। यह यात्रा प्रत्येक वर्ष सावन के महीने में की जाती है। इस यात्रा के ट्रेक हो भारत के सबसे कठिन ट्रेकों में से एक माना जाता है। पहाड़ी पर स्थित यह शिवलिंग भगवान शिव के सबसे बड़े शिवलिंगों में से एक है जिसकी उंचाई लगभग 75 फीट है। यह शिवलिंग समुद्र तल से लगभग 18,570 फीट की उंचाई पर स्थित है।
श्रीखंड महादेव कैलाश यात्रा हिमाचाल प्रदेश के बेस गांव जौन से आरंभ होती है जो श्रीखंड के शीर्ष तक लगभग 32 किलोमीटर की पैदल यात्रा है। इस यात्रा का पूरा रास्ता काफी खतरनाक है। इसी कारण इस यात्रा को अमरनाथ यात्रा से भी कठिन माना जाता है। इस यात्रा में 15 साल से अधिक आयु के भक्त ही यात्रा कर सकते है।
श्रीखंड महादेव यात्रा के दौरान कई धार्मिक स्थल और देव स्थान के दर्शन होते है। श्रीखंड महोदव के दर्शन से पूर्व करीब 50 मीटर पहले ही माता पार्वती, भगवान गणेश और स्वामी कार्तिक की प्रतिमाएं भी स्थापित हैं। वहीं रास्ते में प्राकृतिक शिव गुफा, निरमंड में सात मंदिर, जावों में माता पार्वती सहित नौ देवियां, परशुराम मंदिर, दक्षिणेश्वर महादेव, हनुमान मंदिर अरसु, सिंहगाड़, जोतकाली, ढंकद्वार, बकासुर बध, ढंकद्वार व कुंषा आदि धार्मिक स्थल हैं।
पौराणिक कथा के अनुसार, भस्मासुर नाम का एक राक्षस था उसने कठोर तपस्या से भगवान शिव से वरदान प्राप्त किया था कि वह जिस पर भी अपना हाथ रख देगा वह भस्म हो जाएगा। फिर उसके मन में पाप आ गया और वह माता पार्वती से विवाह करने के बारे सोचने लगा और वह भगवान शिव के ऊपर हाथ रखकर उन्हें नष्ट करना चाहता था। भगवन विष्णु जी ने मोहनी का रूप धारण करके भस्मासुर को अपने साथ नृत्य करने के लिए राजी किया। नृत्य करते हुए भस्मासुर ने खुद के ही सिर पर हाथ रख लिया और वह भस्म हो गया। इस कारण आज भी यहां की मिट्टी और पानी लाल दिखाई देते हैं।
जौन से यात्रा शुरू होती है, और 3 किमी चलने के बाद सिंघाड़ पहुंचते है, यहां पहला बेस कैंप है, जहां तीर्थयात्रियों के लिए भोजन व अन्य सेवायें उपलब्ध कराई जाती है। उसके बाद थाचुरू तक 12 किमी की सीधी खड़ी चढ़ाई है, जिसे दांडी-धार के नाम से भी जाना जाता है।
थाचुरू के बाद ठाकुरू एक और आधार शिविर है, जहां भोजन और टेंट उपलब्ध करायें जाते हैं। यात्रा कालीघाटी तक 3 किमी की चढ़ाई के साथ शुरू होती है, जिसे देवी काली का निवास माना जाता है। अगर मौसम साफ हो तो श्रीखंड महोदव शिवलिंग को इस स्थान से देखा जा सकता है।
कालीघाटी से भीम तलाई की ओर 1 किमी डाउनहिल स्ट्रेच है। भीम तलाई से प्रस्थान करते हुए कुन्सा घाटी तक पहुँचते है, यहां से एक और 3 किमी की दूरी के बाद, अगला बेस कैंप भीम डावर है, जहां सभी सामान्य सेवाएं उपलब्ध होती हैं। बस 2 किमी आगे एक और बेस कैंप है - पार्वती बाग, माना जाता है कि यह बगीचा माता पार्वती द्वारा लगाया गया था। उद्यान में ब्रह्म कमल जैसे फूल हैं, जिन्हें सोसुरिया ओब्लाटाटा के नाम से भी जाना जाता है।
ऐसा माना जाता है कि यह वह स्थान है जहां भगवान गणेश पर हाथी का सिर लगाया गया था। वहाँ से 2 किमी दूर, अगला स्थान नैन सरवोर है। इसके बाद, लगभग 3 किमी की ऊँचाई तक, चट्टानी इलाकों से होते हुए, श्रीखंड महादेव तक पहुँचते है।