कर्पूरगौरं करुणावतारम् मंत्र

महत्वपूर्ण जानकारी

  • Did you know: Karpur Gauram Karunavtaaram is an ancient Sanskrit Shloka related to Lord Shiva, and a popular aarti in Shaivism

मंत्र से भगवान शिवजी की स्तुति की जाती है। भगवान शिव को श्मशान वासी व उनका स्वरुप भंयकर और अघोरी वाला माना जाता है। लेकिन ये स्तुति बताती है कि उनका स्वरुप बहुत दिव्य है। शिव को सृष्टि का अधिपति माना गया है, वे मृत्युलोक के देवता हैं, उन्हें पशुपतिनाथ भी कहा जाता है, पशुपति का अर्थ है संसार के जितने भी जीव हैं (मनुष्य सहित) उन सब का अधिपति। ये स्तुति इसी कारण से गाई जाती है कि जो इस समस्त संसार का अधिपति है, वो हमारे मन में वास करे। भगवान शिव श्मशान वासी हैं, जो मृत्यु के भय को दूर करते हैं। हमारे मन में शिव वास करें, मृत्यु का भय दूर हो।
इस मंत्र से शिवजी की स्तुति की जाती है।

कर्पूरगौरं करुणावतारम् संसारसारं भुजगेन्द्रहारम् |
सदा वसन्तं हृदयारविन्दे भवं भवानीसहितं नमामि ||

इसका अर्थ इस प्रकार है-
कर्पूरगौरं - भगवान शिव जो कपूर के समान शुद्ध है।
करुणावतारं - वह जो जिसका व्यक्तित्व करुणा का अवतार है और जो करुणा का साक्षात् अवतार है।
संसारसारं - वह जो संपूर्ण सृष्टि के सार है।
भुजगेंद्रहारं - वह जो सांप के राजा को अपने गले में हार के रूप में धारण करते है।
सदा वसन्तं हृदयारविन्दे - हृदय अरविंदे का अर्थ है ‘दिल में’ (कमल के रूप में शुद्ध)। कमल, हालांकि गंदे पानी में पैदा होता है, उसके चारों ओर कीचड़ का भी उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। इसी प्रकार भगवान शिव हमेशा (सदा) रहते हैं (वसंत) प्राणियों के हृदय में जिससे उनपर सांसारिक मामलों का प्रभावित कोई नहीं पड़ता हैं।
भवं  - भगवान
भवानीसहितं नमामि - देवी भवानी के रूप में जो पार्वती और शिव को मैं प्रणाम करता हूँ।

मंत्र का पूरा अर्थ: वह जो कपूर के समान शुद्ध, जो जिनका व्यक्तित्व करुणा का अवतार है। जो संपूर्ण सृष्टि के सार है और जो सांपों के राजा को अपने गले में हार के रूप में धारण करते है, वे भगवान, शिव और माता भवानी सहित हृदय में सदैव निवास करें जिसका प्रकार कीचड में कमल रहता है और मैं आपको प्रणाम करता हूँ।










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