श्री शिव ध्यानम

ध्यायेन्नित्यं महेशं रजतगिरिनिभं चारुचन्द्रावतंसं
रत्नाकल्पोज्जवलाड़्गं परशुमृगवराभीतिहस्तं प्रसन्नम्।

पद्यासीनं सतन्तात्स्तुतममरगणैव्र्याध्रकृतिं वसानं
विश्वाद्यं विश्वबीजं निखिलभहरं पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रम्।।

अर्थ:

इस श्लोक में भगवान शिव के दिव्य स्वरूप का वर्णन किया गया है। शिव को हमेशा ध्यान में रखना चाहिए, जो रजत पर्वत (हिमालय) के समान चमकते हैं और जिनके मस्तक पर सुंदर चंद्रमा सुशोभित है। उनका शरीर रत्नों से अलंकृत है, और वे अपने हाथों में परशु (फरसा), मृग, वरदान मुद्रा, और अभय मुद्रा धारण करते हुए प्रसन्नचित्त हैं।

वे कमलासन पर विराजमान हैं और देवताओं द्वारा सतत रूप से स्तुति किए जाते हैं। उनका स्वरूप व्याघ्रचर्म (बाघ की खाल) धारण किए हुए है। वे विश्व के आदि और बीज हैं, सम्पूर्ण भय को हरने वाले, पंचमुखी (पाँच मुख वाले) और त्रिनेत्रधारी (तीन नेत्र वाले) भगवान महेश्वर हैं।










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