आदि बद्री उत्तर भारत के हरियाणा राज्य के यमुनानगर जिले के उत्तरी भाग में स्थित बौबर इलाके में सिगलिक पहाड़ियों की तलहटी में एक वन क्षेत्र और पुरातात्विक स्थल है। इस स्थल यमुनानगर शहर से 40 किलोमीटर की दूरी पर है। यमुनानगर के आसपास बहुत से धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व के स्थल हैं। ऐसे स्थानों में से एक आदि बद्री स्थान है, जो प्रसिद्ध रूप से श्री सरस्वती नदी का उदगम स्थान के नाम से भी जाना जाता है। सरस्वती नदी अब विलुप्त हो चुकी है लेकिन इस स्थान का पौराणिक व धार्मिक महत्व आज भी है तथा यह स्थान हिन्दूओं के धार्मिक स्थलों में से प्रमुख स्थान है।
इस स्थान का उल्लेख हिन्दूओं के प्रमुख ग्रंथों में भी मिलता है जैसे पद्म पुराण, महाभारत, भागवत पुराण आदि। भारतीय पुरातत्व विभाग तथा भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो) द्वारा प्रमाणित भी किया गया है कि सरस्वती नदी आज भी धरातल के नीचे प्रवाहमान् है, तथा कुरुक्षेत्र, पिहोवा, हिसार, मोहनजोदड़ो, राजस्थान होती हुई अरब सागर में विलीन होती है।
आदि बद्री में यह नदी पहाड़ों से निकलकर धरती में प्रविष्ट होती है। इसी प्रक्रिया में मात्र एक कुंड के रूप में इस नदी के दर्शन पृथ्वीतल पर होते हैं। कुछ लोग मानते हैं कि यही एकमात्र ऐसा स्थान है, जबकि कुछ लोग मानते है कि इस नदी के दर्शन पिहोवा में भी होते हैं। इस अवस्था में इस स्थान की तुलना हरिद्वार से की जा सकती है, जहां गंगा नदी पहाड़ों से निकलकर मैदानी तल पर अवतरित होती है।
यहां एक माता मंतरा देवी का मंदिर भी है, जो हिंदू देवी है और राजा विराट की सबसे छोटी बेटी है। कहा जाता है कि सरस्वती नदी यहां सूखने से पहले यहां उत्पन्न हुई थी। ऐतिहासिक कहानियों के अनुसार, ऋषि उथ्य से अभिशाप के कारण नदी सूख गई और इस नदी को धन, धन और उर्वरता के दाता के रूप में सम्मानित किया गया। नदी का पानी भी बहुत पवित्र माना जाता था, जो व्यक्ति के पापों को से मुक्त कर सकता था। वहां भी एक छोटा सा स्थान है जहां भगवान बुद्ध की एक मूर्ति आदि बलड़ी में भी स्थित है।