किन्नर कैलाश हिन्दूओं व बौद्ध धर्म के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है। किन्नर कैलाश हिन्दूओं के लिए एक आस्था का प्रतिक है। किन्नर कैलाश हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले में तिब्बत सीमा के समीप स्थित है। किन्नर कैलाश एक पर्वत है जो समुद्र तल से 6050 मीटर (लगभग 24000 फीट) की ऊँचाई पर है। किन्नर कैलाश, पर्वत की चौटी पर स्थित है जिसकी ऊँचाई लगभग 40 फीट और चौड़ाई लगभग 16 फीट है। हिन्दू धर्म में इस हिम खंण्ड को भगवान शिव के प्राकृतिक शिव लिंग के रूप में पूजा जाता है। किन्नर कैलाश की परिक्रमा भी कि जाती है, जो हिन्दूओं के लिए हिमालय पर होने वाले तीर्था यात्राओं में से एक है।
हिमालय पर्वत का संबंध न केवल हिंदू पौराणिक कथाओं से है वरन हिंदू समाज की आस्था से भी इसका गहरा लगाव है। यह वही हिमालय है जहां से पवित्रतम नदी गंगा का उद्भव गोमुख से होता है। ‘देवताओं की घाटी’ कुल्लू भी इसी हिमालय रेंज में आता है। इस घाटी में 350 से भी ज्यादा मंदिरें स्थित हैं।
किन्नर कैलाश की यात्रा मानसरोवर और अमरनाथ की यात्रा के समान कठिन माना जाता है। यह यात्रा हर साल सवान के महीने में आरम्भ होती है। यात्रा को पूरा करने के लिए लगभग 2 से 3 दिन लगते है। यह यात्रा 1993 से पर्यटकों के लिए खोला गया है। यात्रा के दौरान हजारों की सख्या में ब्रह्म कमल के फूलों को देखा जा सकता है। यह फूल भगवान शिव को बहुत पसंद है।
हिन्दू पौराणिक कथा के अनुसार यह स्थान भगवान शिव और पार्वती से जुड़ा हुआ है। ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव और पार्वती का मिलन इसी स्थान पर हुआ है।
पौराणिक कथाओं में कहा गया है कि भगवान शिव ने हर सर्दी में किन्नर कैलाश शिखर पर देवी और देवताओं की बैठक आयोजित की थी।
हर वर्ष सैकड़ों शिव भक्त जुलाई व अगस्त में महीने में दुर्गम मार्ग से होकर किन्नर कैलाश की यात्रा करते है। किन्नर कैलाश की यात्रा शुरू करने के लिए भक्तों को जिला मुख्यालय से करीब सात किलोमीटर दूर राष्ट्रीय राजमार्ग-5 पर स्थित पोवारी से सतलुज नदी को पार कर तंगलिंग गांव से हो कर जाना पडता है। गणेश पार्क से करीब पाच सौ मीटर की दूरी पर पार्वती कुंड है। इस कुंड के बारे में मान्यता है कि इसमें श्रद्धा से सिक्का डाल दिया जाए तो मुराद पूरी होती है। भक्त इस कुंड में पवित्र स्नान करने के बाद करीब 24 घटे की कठिन यात्रा करके किन्नर कैलाश स्थित शिवलिंग के दर्शन कर पाते हैं।
किन्नर कैलाश के इस शिव लिंग की एक विशेषता यह कि है यह दिन में कई बार रंग बदलता है। सूर्योदय से पहले सफेद, सूर्योदय के बाद पीला, सूर्येअस्त से पहले लाल और सूर्येअस्त के बाद ये काले रंग का हो जाता है।
यात्रा के दौरान ऑक्सीजन की कमी होती है। अपने साथ गर्म कपड़े, टार्च, डंडा, जुराबें, पानी की बोतल, ग्लूकोज और जरूरी दवाइयां साथ रखें। नशे का प्रयोग न करें। यात्रा के दौरान जड़ी बूटियों और खासकर ब्रह्मकमल फूलों को नुकसान न करें।
किन्नर कैलाश यात्रा शुक्रवार, 1 अगस्त 2025 से शुरू होगी (अस्थायी तारीख - तारीख की पुष्टि नहीं हुई है)।