आनन्द पुर साहिब व तख्त श्री केशगढ़ साहिब गुरुद्वारा आनन्द पुर, जिला रूपनगर (रोपड़), पंजाब में स्थित है। आनन्द पुर साहिब को ‘‘परमानंद के पवित्र शहर’’ (the holy City of Bliss) के नाम से भी जाना जाता है।
आनन्द पुर साहिब गुरुद्वारा सिक्खों के लिए पवित्र स्थानों में से एक है जोकि उनकी धार्मिक पंरपराओं और इतिहास के साथ जुड़ा हुआ है। यह प्रतिष्टित स्थान खालसा का जन्मस्थान भी है। आनन्द पुर शहर हिमालय पर्वत श्रंखला के निचले इलाके में बसा हुआ है तथा इस शहर के स्थापना 9वें सिक्ख गुरु, गुरु तेग बहादुर जी ने सन् 1664 में की थी। गुरु गोबिंद सिंह ने सन 1699 में पंज प्यारों की उपाधि दी थी और खालसा पंथ की शुरुआत हुई थी।
एक मान्यता के अनुसार बिलासपुर की दोवागर रानी चंपा ने अपने पति राज दीप चंद की शोकसभा में आने के लिए गुरू को जमीन का एक हिस्सा दिया था। गुरू ने माक्होवाल के पास इस जमीन पर चक नानाकी नाम का गांव बसाया, जो बाद में आनंदपुर साहिब के नाम से प्रसिद्ध हुआ। यहां होल्ला मोहल्ला त्योहार भी विशेष तौर से मनाया जाता है, जिसमें बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं। आनंदपुर रूपनगर से करीब 41 किमी दूर है और यहां कई गुरुद्वारे और किले हैं, जो सिक्खों के बीच काफी पवित्र है।
होल्ला मोहल्ला का त्योहार हर साल मनाया जाता है यह पंरपरा व त्योहार सिक्खों के 10वें गुरु श्री गोबिंद सिंह जी के समय से मनाया जाता है और गुरु जी ने यह फैसला किया कि यह त्योहार होली के अवसर जो कि एक रंग और उल्लास को त्योहार के दिन मनाया जाएगा।
प्रत्येक वर्ष होला मोहल्ला रंग और उल्लास का त्योहार में देश भर से लगभग 1,00,000 श्रद्धालुओं मेले में हिस्सा लेते है। मेला तीन दिनों तक चलता है। इस अवसर पर गुरुद्वारा का विशेष तौर पर सजाया जाता है। इस अवसर पर सामुदायिक सम्मेलनों और धार्मिक कार्यो का भी आयोजन किया जाता है। इस अवसर पर देश भर के सभी निहंग समारोहों के लिए इकट्ठा होते है। मेले के मुख्य आर्कषण अन्तिम तीन दिन होते है जिसमें सभी निहंग अपने पारंपरिक पोशाक और हथियारों के साथ एक विशाल जुलूस निकालते है जोकि शहर के बाजारों से गुजरता है। इस जुलूस में तलवार चलाना और कई करतब दिखायें जाते है।