वरुथिनी एकादशी, जिसे बरूथनी एकादशी भी कहा जाता है, एक हिंदू पवित्र दिन है, जो चैत्र के हिंदू महीने के ग्यारवें चंद्र दिवस को पड़ती है। वरुथिनी एकादशी अप्रैल या मई में पड़ती है। सभी एकादशियों की तरह, भगवान विष्णु, विशेष रूप से उनके पांचवें अवतार वामन की पूजा की जाती है।
धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा था कि वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का क्या नाम है? श्रीकृष्ण कहा कि हे राजेश्वर! इस एकादशी का नाम वरुथिनी है। यह सौभाग्य देने वाली, सब पापों को नष्ट करने वाली तथा अंत में मोक्ष देने वाली है।
इस दिन व्रत करके जुआ खेलना, नींद, दन्तधावन, परनिन्दा, क्षुद्रता, चोरी, हिंसा, रति, क्रोध तथा झूठ को त्यागने का माहात्म्य है ऐसा करने से मानसिक शान्ति मिलती है। व्रती को सात्विक खाना चाहिए। परिवार के सदस्यों को रात्रि को भगवद् भजन करके जागरण करना चाहिए। इस दिन अन्न का दान सबसे बड़ा दान माना जाता है।
प्राचीन काल में नर्मदा तट पर मांधाता नामक राजा राज्य करता था। वह अत्यन्त ही दानशील और तपस्वी राजा था।
एक दिन तपस्या करते समय एक जंगली भालू राजा मांधाता का पैर चबाने लगा। थोड़ी देर बाद भालू राजा को घसीटकर वन में ले गया। राजा घबराकर विष्णु भगवान से प्रार्थना करने लगा। भक्त की पुकार सुनकर विष्णु भगवान ने अपने सुदर्शन चक्र से भालू को मारकर अपने भक्त की रक्षा की। भगवान विष्णु ने राजा मांधाता से कहा - हे वत्स! मथुरा में मेरी वाराह अवतार मूर्ति की पूजा बरूथनी एकादशी का व्रत रखकर करो। उसके प्रभाव से तुम पुनः अपने पैरों को प्राप्त कर सकोगे। यह तुम्हारा पूर्व जन्म का अपराध था। राजा ने इस व्रत को अपार श्रद्धा से किया तथा पैरों को पुनः प्राप्त कर लिया।