एक बार गांव में एक सेठ रहता था। वह बहुत बुढ़ा हो गया था। वह बहुत सत्संगी था हमेशा भगवान की आराधना करता रहता था। एक दिन उसने, अपने बेटों से कहा, कि अपने अंतिम समय में, मैं तुम्हें कुछ जरूरी बातें बताना चाहता हूं। सेठ ने अपने दोनों बेटों से कोयला और चंदन का एक टुकड़ा लाने को कहा, बेटों ने बाज़ार से कोयला और चंदन की एक छोटी से लकड़ी लेकर लेकर पिता के पास पहुंच गयें। सेठ ने एक बेटे को कोयला और दूसरे को चंदन की लकड़ी हाथ में दें दी, और कहा, बेटा, इन दोनों को नीचे फेंक दों, बेटों ने दोनों चीजें नीचे फेंक दीं और हाथ धोने लगें, तो सेठ जी बोलें, बेटा मुझे अपने हाथ दिखाओ, जब बेटो ने अपनें हाथ दिखाए, तो सेठ जी ने, जिसके हाथ में कोयला था, हाथ पकड़ कर बोले, देखा कोयला पकड़ते ही हाथ काला हो गया लेकिन उसे फेंक देने के बाद भी तुम्हारे हाथ में कालिख लगी रह गई। गलत लोगों की संगति ऐसी ही होती है, उनके साथ रहने पर भी दुख होता है और उनके न रहने पर भी जीवन भर के लिए बदनामी साथ लग जाती है। दूसरी ओर संत महापुरुषों का संग इस चंदन की लकड़ी की तरह है जो साथ रहते हैं तो दुनिया भर का ज्ञान मिलता है और उनका साथ छूटने पर भी उनके विचारों की महक जीवन भर बनी रहती है। इसलिए हमेशा संत महात्मा की संगति में ही रहना। ताकि तुम्हारा जीवन इस चंदन की लकड़ी की भान्ति महकता रहें।