भोजन ग्रहण करने के पश्चात् कम से कम सौ कदम चलना अति आवश्यक है। चलने से भोजन यदि आहारनाल में कहीं थोड़ा फँसा भी होता है तो वह आसानी से पेट में पहुँच जाता है जबकि सोने से उसी स्थान पर रुका रह जाता है। भोजन करके तुरन्त सोने से कई प्रकार के रोग उत्पन्न हो सकते हैं और बैठे रहने से पेट बढ़ जाता है।
भोजन से पहले पानी पीना अमृत समान है और भोजन के बाद पानी पीना विष जहर के समान है। अतः भोजन करने के 15 अथवा 20 मिनट पश्चात् पानी पियें। यदि सम्भव हो तो आधे घण्टे या एक घण्टे बाद पियें।
वैज्ञानिक कारण - भोजन करने के पश्चात् शरीर में एक प्रकार की ऊष्णता गर्मी का अनुभव करते हैं। ऐसा क्यों? क्योंकि अन्न में गर्मी होती है और वह गर्मी पेट में भोजन के माध्यम से पहुँचती है जठराग्नि उस भोजन को पचाने के कार्य में लग जाती हैं तथा अन्न की गर्मी से उत्पन्न गैस अपने मार्गो से बाहर निकलती है जबकि तुरन्त भोजन के बाद पानी पीने से निकलने वाली गैस पानी की शिथिलता से दब जाती है और बाद में अनेक प्रकार के रोगों के रूप में उत्पन्न होती है।
ताँबे का पात्र में भोजन करना निषिध्द माना गया है क्योंकि हिन्दुओं की धर्म मान्यता के अनुसार ताम्रपात्र के केवल देवपूजा के प्रयोग में लाया जाता है।
वैज्ञानिक कारण - ताम्र पात्र में जल के अतिरिक्त अन्य पदार्थ रखने पर भोजन और ताँबे के पात्र में रासायनिक अभिक्रिया होने लगती है जिससे पात्र में रखा हुआ भोज्य पदार्थ विकृत होने लगता है।