

शिव साधना एक प्राचीन अभ्यास है जो मन को शांत करने, तनाव को कम करने और आंतरिक शांति का अनुभव करने में मदद करता है। यह एक ऐसी अवस्था है जिसमें हम अपने विचारों और भावनाओं के प्रति जागरूक होते हैं, लेकिन उनसे जुड़े नहीं होते हैं।
ध्यान में बैठने से पहले, अपने मन और मस्तिष्क को विचारों से खाली करना महत्वपूर्ण है। एक शांत और आरामदायक जगह चुनें जहाँ आपको कोई परेशान न करे। अपनी आँखें बंद करें और गहरी साँस लें। धीरे-धीरे अपने शरीर को आराम दें और अपने मन को शांत करें।
जैसे ही आप अपने मन को खाली करते हैं, परमात्मा की अनुभूतियाँ आपके अंदर उतरनी शुरू हो जाती हैं। आप शांति, आनंद और प्रेम का अनुभव कर सकते हैं। समय के साथ, आप अन्य विचारों और तनावों से भी खाली होने लगेंगे।
ध्यान को अक्सर एक प्रकार की नींद के रूप में वर्णित किया जाता है, जिसमें आप होश में रहते हैं, लेकिन आपका ऊपरी मन सो जाता है। आपका अवचेतन मन जागृत हो जाता है, जिससे आप अपने आंतरिक ज्ञान और अंतर्ज्ञान तक पहुँच सकते हैं।
जब आप सोने के लिए लेटते हैं, तो आप अपने मन को खाली करते हैं और विचार शून्य हो जाते हैं। फिर, नींद आ जाती है और सपने आने लगते हैं। सपने इसलिए आते हैं क्योंकि ऊपरी मन के सो जाने पर, मन की सारी शक्तियाँ खो जाती हैं।
ध्यान साधक इससे भी आगे जाता है, जहाँ चित्त का आत्मा के साथ संबंध जुड़ जाता है।
वैज्ञानिकों का मानना है कि चित्त की स्मृति के साथ जब आत्मा का संबंध जुड़ता है, तो सपने आते हैं। चित्त के अंदर जो कुछ भी स्मृतियाँ रिकॉर्ड हैं, वे तब आत्मा के साथ संबंधित हो जाती हैं। चित्त के साथ जैसे ही उसका जुड़ाव होता है, सपने दिखाई देने लगते हैं।
इस प्रकार, सपनों और स्मृतियों के पार होकर, आत्मा उस समय सूक्ष्म नाड़ियों में प्रवेश करती है। लेकिन उसी समय, हम स्वप्नावस्था से गहरी नींद में आ जाते हैं। यही क्रम बार-बार दोहराता है। यही क्रम ध्यान के प्रारंभ में होता है। ध्यान में गहरे जाते ही योग निद्रा व तन्मयता आती है।
लेकिन यह अवस्था देर तक नहीं रहती, पुनः हम वापस आते हैं, स्वप्न से जुड़ते हैं। तत्काल नया झोंका हमें फिर गहराई में ले जाता है। इन स्वप्नों के पार जाने के लिए साधक को शिवलोक की जरूरत होती है। भगवान शिव स्वप्नों के हर्ता हैं।
शिव तत्व एक रक्षा चक्र है, ब्रह्म चक्र है, शक्ति चक्र है जो साधक को हर प्रकार से सुरक्षित कर देता है। शिव साधना से भक्त की सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। यह जगत शिव शक्ति स्वरूप ही है। शिव ही आदि गुरु कहलाते हैं। इसलिए शिव के ध्यान में गुरु कृपा स्वतः मिलने लगती है। गुरु का ध्यान शिव का ही ध्यान है।
यदि बोधि में कोई परम तत्व है, परम स्थिति है, परम प्रकाश है और परमेश्वर है, तो वह शिव ही हैं। जो जागृत, स्वप्न और सुषुप्त तीनों अवस्थाओं से परे हैं।
शिव ध्यान की प्रक्रिया सरल लेकिन अत्यंत प्रभावशाली है। ध्यान में बैठने से पहले मन और मस्तिष्क को विचारों से मुक्त करना आवश्यक होता है। जब मन पूर्णतः शून्य अवस्था में पहुंचता है, तब शिव तत्व की अनुभूति होने लगती है।
निष्कर्ष:
ध्यान एक शक्तिशाली उपकरण है जो हमें अपने मन को शांत करने, अपने शरीर को आराम देने और अपनी आत्मा से जुड़ने में मदद कर सकता है। यह एक ऐसा अभ्यास है जो सभी के लिए सुलभ है, चाहे उनकी उम्र या अनुभव का स्तर कुछ भी हो। नियमित ध्यान अभ्यास के साथ, आप अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला सकते हैं।