

यह श्लोक भगवद गीता, अध्याय 7, श्लोक 2 से है। यह संस्कृत में लिखा गया है और हिंदी में इसका अनुवाद इस प्रकार है:
ज्ञानं तेऽहं सविज्ञानमिदं वक्ष्याम्यशेषत: |
यज्ज्ञात्वा नेह भूयोऽन्यज्ज्ञातव्यमवशिष्यते ||2||
"मैं तुम्हें यह संपूर्ण ज्ञान और उसके साथ विशिष्ट विज्ञान बताऊंगा, जिसे जान लेने के बाद इस संसार में कुछ भी जानने योग्य शेष नहीं रहेगा।"
इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को परम ज्ञान और उसके विशेष स्वरूप का महत्व समझा रहे हैं। वे कहते हैं कि वे अर्जुन को न केवल सैद्धांतिक ज्ञान (ज्ञान) बल्कि उसके व्यावहारिक अनुभव (विज्ञान) सहित संपूर्ण रूप से ज्ञान प्रदान करेंगे।