

यह श्लोक भगवद गीता, अध्याय 7, श्लोक 1 से है। यह संस्कृत में लिखा गया है और हिंदी में इसका अनुवाद इस प्रकार है:
भगवान श्रीउवाच |
मय्यासक्तमना: पार्थ योगं युञ्जन्मदाश्रय: |
असंशयं समग्रं मां यथा ज्ञास्यसि तच्छृणु || 1||
"श्रीभगवान ने कहा: हे पार्थ! यदि तुम अपने मन को मुझमें आसक्त कर लो और मेरे आश्रय में रहकर योग का अभ्यास करो, तो तुम निःसंदेह मुझे संपूर्ण रूप से जान सकोगे। इसे सुनो।"
भगवान श्रीकृष्ण इस श्लोक में अर्जुन को ज्ञानयोग और भक्ति का मार्ग समझा रहे हैं। वे बताते हैं कि जब कोई साधक अपने मन को भगवान में पूरी तरह से स्थिर कर लेता है और उनके आश्रय में रहता है, तो वह ईश्वर को पूरी तरह से समझ सकता है।