भगवद गीता अध्याय 4, श्लोक 22

यदृच्छालाभसन्तुष्टो द्वन्द्वातीतो विमत्सर: |
सम: सिद्धावसिद्धौ च कृत्वापि न निबध्यते || 22||

जो भी लाभ अपने आप में आता है, और ईर्ष्या से मुक्त, वे जीवन के द्वंद्वों से परे हैं। सफलता और असफलता से लैस होने के नाते, वे सभी प्रकार की गतिविधियों को करते हुए भी अपने कार्यों से बंधे नहीं होते हैं।

शब्द से शब्द का अर्थ:

यदृच्छा - जो अपने आप आता है
लाभ - लाभ
सन्तुष्टो - संतोषी
द्वन्द्वा - द्वैत
अति - परे
विमत्सर: - ईर्ष्या से मुक्त
सम: - equipoised
सिद्धा - सफलता में
वसिद्धौ - विफलता
चा - और
कृत्वा - प्रदर्शन
आपि - भी
ना - कभी नहीं
निबध्यते - बाध्य है



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