संसार का दूसरा नाम मृत्यु लोक है । मृत्यु पता नहीं कब आ जाए इसका कोई भी भरोसा नहीं है । संसार ऋणानुबंध है यहां जो व्यक्ति जैसा करता है उसे वैसा ही भरना पड़ता है । इस संसार में कोई भी अपना नहीं है जब तक लोगों का स्वार्थ पूरा होता रहता है तब तक ही उसे अपना मानते हैं । निर्धन व्यक्ति को तो रिश्तेदार भी अनजान बताने लगते हैं । जब तक व्यक्ति कार्य कर रहा है तब तक ही परिवार वाले उसका सम्मान करते हैं । कार्य करने की क्षमता न रहने पर उसका घर में बैठे रहना भी अच्छा नहीं लगता है । कोई उसके साथ बोलना भी पसंद नहीं करता है । जिस संतान के लिए खून पसीना एक करके आलीशान मकान बनाए थे वे उसमें एक चारपाई की जगह देना भी पसंद नहीं करते हैं । ऐसा होने पर भी व्यक्ति मोह जाल में फंसा हुआ है ।
कहते हैं एक बार नारद जी भगवान विष्णु के पास गए और उनसे कहा भगवन ! संसार में बहुत लोग आपकी भक्ति में लगे हुए हैं । यदि वे सब स्वर्ग में आ गए तो पृथ्वी ही खाली हो जायेगी और स्वर्ग में बहुत भीड़ भीड़क्का हो जायेगा भगवान बोले अरे नारद ! स्वर्ग में तो कोई आना ही नहीं चाहता है सब सांसारिक सुखों के लिए भजन कर रहे हैं । नारद बोले हे प्रभु ! कोई स्वर्ग में न आना चाहता हो मुझे तो ऐसा नहीं लगता है । इतनी अच्छी जगह तो सब आना चाहते होंगे । विष्णु बोले आप पृथ्वीलोक जाओ और जो भी स्वर्ग में आना चाहे उन्हें अपने साथ ले आओ । नारद जी पृथ्वीलोक आए और उन्होंने सोचा कि तपस्वी लोग ही स्वर्ग जाने के अधिकारी हैं इसलिए पहले इन्हीं को स्वर्ग लेकर के चलना चाहिए ।
नारद जी तपस्यारत साधुओं के पास गये और उन्हें स्वर्ग चलने के लिए कहा । साधुओं ने कहा नारद जी संतो का शरीर तो परोपकार के लिए होता है । हम संसार के लोगों को उपदेश करके सन्मार्ग दिखा रहे हैं गुरुकुल में विद्यार्थियों को चरित्र निर्माण की शिक्षा दे रहे हैं । हमारा स्वर्ग तो यहीं पर है इसके बाद वे राजा से लेकर भिखारी तक बहुत लोगों के पास गये परंतु कोई भी स्वर्ग चलने को तैयार नहीं हुआ । हारकर नारद जी वापस चल दिए तो एक वृद्ध व्यक्ति कह रहा था हे भगवान ! अब तो उठा ले और कितने दुख दिखाएगा नारद जी ने सोचा चलो एक व्यक्ति तो मिला । वे उसके पास गए और बोले बाबा चलो मैं आपको स्वर्ग लेकर के चलता हूं । वृद्ध व्यक्ति ने कहा नारद जी मैं स्वर्ग तो चलता परंतु अभी मेरे बेटे की शादी नहीं हुई है उसकी शादी हो जाए इसके बाद मैं स्वर्ग चलूंगा ।
नारद जी शादी के बाद आए तो वृद्ध ने कहा नारद जी एक पोते का मुंह और देख लूं उसके बाद आपके साथ मैं स्वर्ग चलूंगा । नारद जी इसके बाद आए तो उसके एक पोता हो चुका था नारद जी ने कहा अब तो पोता भी हो गया है अब मेरे साथ चलिए । वृद्ध ने कहा नारद जी इसके मां बाप बड़े लापरवाह हैं मैं ही पोते का ध्यान रखता हूं यदि मैं आपके साथ चला गया तो पोते का जीवन बर्बाद हो जाएगा । यह थोड़ा समझदार हो जाए तब मैं आपके साथ चलूंगा । कुछ दिन बाद नारद जी फिर आए तो उन्होंने देखा कि वृद्ध चलने फिरने में असमर्थ हो गया था और घर की रखवाली के लिए गेट पर बैठा हुआ था ।
नारद जी ने कहा भाई अब तो तू चलने फिरने में भी असमर्थ हो गया है अब तो मेरे साथ चल वृद्ध बोला मेरे बच्चे बड़े लापरवाह हैं वे घर को खुला छोड़ कर चले जाते हैं मैं घर की देखभाल करता हूं रात की पहरेदारी करता हूं यदि मैं चला गया तो चोर उनका सामान उठाकर ले जाएंगे । नारद जी कुछ समय बाद फिर आए तो उन्होंने देखा कि वृद्ध की चारपाई घर के पीछे एक कोने में पड़ी हुई थी वह उठ बैठ भी नहीं सकता था । तब नारद जी ने कहा अब तो तेरी बहुत दुर्गति हो गई है अब तो मेरे साथ स्वर्ग चल । बूढ़े ने क्रोधित होकर कहा अरे नारद तू मेरे पीछे क्यों पड़ा हुआ है ? किसी और को ढूंढ ले मुझे तेरा स्वर्ग नहीं चाहिए । मेरे बच्चे अपना बचा खुचा खाना मुझे दे देते हैं अपने परिवार को फलता फूलता देख रहा हूं मेरा तो यही स्वर्ग है । अब तू यहां से चला जा और आगे से कभी भी मेरे पास नहीं आना।
अब विचार करें यदि नारद जी स्वर्ग ले जाने के लिए हमारे पास आएं तो क्या हम उनके साथ जाने के लिए तैयार होंगे ? अथवा उन्हें कुछ समय तक प्रतीक्षा करने के लिए कहेंगे मैं ईश्वर भक्ति में लगे हुए बहुत लोगों से पूछता हूं कि आपकी साधना कैसी चल रही है? तो लगभग सभी का एक ही उत्तर होता है अभी कुछ जिम्मेदारियां बाकी हैं वे पूरी हो जाए तब एक तरफा होकर साधना में लगेंगे । जिम्मेदारियां कभी भी पूरी होने वाली नहीं हैं आयु अवश्य ही पूरी हो जाएगी। जिम्मेदारियां निभाते हुए ही परमात्मा की भक्ति करनी पड़ती है वर्तमान स्थिति से संतुष्ट रहने वाला व्यक्ति ही साधना कर सकता है । अनुकूल परिस्थिति की कल्पना करने वाले व्यक्ति भक्ति मार्ग को नहीं अपना सकते हैं ।