मंदिर वह स्थान है जहां पर किसी व्यक्ति का मन को शाति मिलती है जिसके अन्दर जाते है तो शान्ति की अनूभुति होती है। जहा भगवान का वास होता है। वह स्थान मंदिर होता है परन्तु वास्तव में मंदिर शब्द का अर्थ क्या होता है ? इस शब्द की रचना कैसे हुई?
मंदिर शब्द में ‘मन’ और ‘दर’ की संधि विच्छेद करें, तो मन + दर होता है।
मन अर्थात मन होता है। दर अर्थात द्वार होता है।
मन का द्वार तात्पर्य यह है कि जहाँ हम अपना मन का द्वार खोलते हैं, वह स्थान मंदिर है।
और अगर हम मन का संधि विच्छेद करें तो म + न होता है।
म अर्थात मम = मैं
न अर्थात नहीं
जहाँ मैं नहीं !!
अर्थात जिस स्थान पर जाकर हमारा ‘मैं’ यानि अंहकार ‘न’ रहे वह स्थान मंदिर है।
सर्व विदित है कि ईश्वर हमारे मन में ही है, अतः जहाँ ‘मैं’ ‘न’ रह कर केवल ईश्वर हो वह स्थान मंदिर है।