चमोली का नन्दा देवी सिद्धपीठ कुरुड़ एक मन्दिर है, जो भगवती नंदा (पार्वती) को समर्पित है। यह उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले में स्थित है। नंदा शब्द का अर्थ जगत जननी भगवती होता है और नंदा धाम के नाम से जाना जाता है। इस मन्दिर को नंदा का मायका माना जाता है और यहां की कैलाश यात्रा, नंदा देवी राजजात उत्सव प्रसिद्ध है। इस उत्सव में नंदा देवी की डोली और लाटू देवता की डोली सुसज्जित रथों में विराजमान होकर अपने मायके से ससुराल की यात्रा करती हैं।
श्री नंदा देवी राज राजेश्वरी कई नामों से पूरे ब्रह्मांड में पूजी जाती हैं और विभिन्न जातियों की मुख्य देवी रही हैं। लगभग 1000 वर्ष पूर्व, किरात जाति के लोग भद्रेश्वर पर्वत की तलहटी में नंदा देवी की पूजा करते थे। मध्यकाल से यह उत्सव हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यह उत्तराखंड के कई नंदा देवी मन्दिरों में भी मनाया जाता है।
इस मंदिर के मुख्य पुजारी कान्यकुब्जीय गौड़ ब्राह्मण हैं। दशोली क्षेत्र की नंदा की डोली साल भर यहाँ विराजमान रहती है, जबकि बधाण क्षेत्र की नंदा की डोली भाद्रपद में नंदा देवी जात के बाद थराली के देवराड़ा मंदिर में स्थापित होती है और मकर संक्रांति पर वापस कुरुड़ मंदिर में आती है।
मन्दिर का उद्गम सातवीं सदी में हुआ था। समय-समय पर इसका जीर्णोद्धार होता रहा और सन 1210 में गढ़वाल शासक सोनपाल ने इसका जीर्णोद्धार कराया। सन 1432 में गढ़वाल नरेश अजय पाल ने सोने का छत्र चढ़ाया। वर्तमान में मंदिर देवसारी नामक स्थान पर स्थित है।
नन्दा देवी इस मंदिर की मुख्य देवी हैं। नंदा भगवती की प्राचीन शिला मूर्ति गर्भ गृह में पाषाण चबूतरे पर स्थापित है। इतिहास के अनुसार, इन मूर्तियों की पूजा मंदिर के निर्माण से पहले से की जाती रही है। संभव है कि यह प्राचीन जनजातियों द्वारा भी पूजित रही हो। यहां मां भगवती की शिला मूर्ति चतुर्भुज रूप में स्थापित है और एक लिंग के रूप में विद्यमान है। प्रत्येक दिन पूजा के बाद मां नंदा को स्थानीय परंपरागत व्यंजन "पूवे" (गुलगुले, जो आटे और गुड़ से बने होते हैं) चढ़ाए जाते हैं। यही मां नंदा देवी का प्रसाद होता है।