जय प्रेतराज कृपालु मेरी, अरज अब सुन लीजिये |
मैं शरण तुम्हारी आ गया हूँ, नाथ दर्शन दीजिये ||
मैं करूं विनती आपसे अब, तुम दयामय चित धरो |
चरणों का ले लिया आसरा, प्रभु वेग से मेरा दुःख हरो ||
सिर पर मोरमुकुट करमें धनुष, गलबीच मोतियन माल है |
जो करे दर्शन प्रेम से सब, कटत तन के जाल है ||
जब पहन बख्तर ले खड़ग, बांई बगल में ढाल है |
ऐसा भयंकर रूप जिनका, देख डरपत काल है ||
अति प्रबल सेना विकट योद्धा, संग में विकराल है |
तब भूत प्रेत पिशाच बांधे, कैद करते हाल है ||
तब रूप धरते वीर का, करते तैयारी चलन की |
संग में लड़ाके ज्वान जिनकी, थाह नहीं है बलन की ||
तुम सब तरह समर्थ हो, प्रभुसकल सुख के धाम हो |
दुष्टों के मारनहार हो, भक्तों के पूरण काम हो ||
मैं हूँ मती का मन्द मेरी, बुद्धि को निर्मल करो |
अज्ञान का अंधेर उर में, ज्ञान का दीपक धरो ||
सब मनोरथ सिद्ध करते, जो कोई सेवा करे |
तन्दुल बूरा घृत मेवा, भेंट ले आगे धरे ||
सुयश सुन कर आपका, दुखिया तो आये दूर के |
सब स्त्री अरु पुरुष आकर, पड़े हैं चरण हजूर के ||
लीला है अदभुत आपकी, महिमा तो अपरंपार है |
मैं ध्यान जिस दम धरत हूँ, रच देना मंगलाचार है ||
सेवक गणेशपुरी महन्त जी, की लाज तुम्हारे हाथ है |
करना खता सब माफ़, उनकी देना हरदम साथ है ||
दरबार में आओ अभी, सरकार में हाजिर खड़ा |
इन्साफ मेरा अब करो, चरणों में आकर गिर पड़ा ||
अर्जी बमूजिब दे चुका, अब गौर इस पर कीजिये |
तत्काल इस पर हुक्म लिख दो, फैसला कर दीजिये ||
महाराज की यह स्तुति, कोई नेम से गाया करे |
सब सिद्ध कारज होय उनके, रोग पीड़ा सब टरे ||
“सुखराम” सेवक आपका, उसको नहीं बिसराइये |
जै जै मनाऊं आपकी, बेड़े को पार लगाइये ||