कबीर या भगत कबीर 15 वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी कवि और संत थे। कबीर जी के रचनाओं ने हिन्दी प्रदेश के भक्ति को गहरे स्तर तक प्रभावित किया था। उनक लेखन का सिखों के आदि ग्रथ में भी देखा जा सकता है। संत कबीर किसी भी धर्म को नहीं मनाते थे। उन्होंने सामाज में फैली कुरीतियों, कर्मकांड, अंधविश्वास की निंदा की और सामाजिक बुराइयों की कड़ी आलोचना की थी। उनके जीवनकाल के दौरान हिन्दू और मुसलमान दोनों ही धर्मो के कई लोग इनके बहुत कड़े आलोचक थे।
कबीर के जन्म स्थान के बारे में सही जानकारी नहीं है परन्तु कुछ लोग मानते है कि इनका जन्म काशी में ही हुआ था जिसकी पुष्टि स्वयं संत कबीर ने अपने एक कथन में भी किया था।
‘काशी में परगट भये, रामानंद चेताये‘
संत कबीर, आचार्य रामानंद को अपने गुरु बनाना चाहते थे। परन्तु आचार्य रामानंद ने उनको अपना शिष्य बनाने से मना कर दिया था। संत कबीर ने अपने मन मे ठान लिया कि स्वामी रामानंद को अपना गुरु बनाऊंगा। इसके लिय संत कबीर ने सुबह चार बजे जब रामानंद गंगा स्नान के लिए जाते तो उनकी रास्ते की सीढ़ियों पर लेट गये। जब रामानंद की का पैर संत कबीर से शरीर पर पड़ा तो रामानंद जी मुंह से राम राम निकला। रामानंद जी के मुख से राम शब्द को संत कबीर ने दीक्षा-मन्त्र मान लिया और रामानंद जी का अपना गुरु मान लिया।
संत कबीर खुद पढ़े लिखे नहीं थे इसलिए उन्होंने खुद कोई ग्रंथ नहीं लिखा उनके अपने मुंह से बोले और उनके शिष्य ने लिख लिया था। इनके विचारों में रामनाम की महिमा प्रतिध्वनित होती है। वे एक ईश्वर को मानते थे।