वराह जयंती हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण दिन माना जाता है। वराह जयंती के दिन भगवान विष्णु की पूजा करने का विधान है। वराह अवतार भगवान विष्णु का तीसर अवतार माना जाता है। भगवान विष्णु ने यह अवतार सतयुग में लिया था। ऐसा माना जाता है कि हिरण्याक्ष नामक दैत्य का संहार करने हेतु भगवान विष्णु ने वाराह का अवतार लिया था। भगवान विष्णु की प्रतिमा को गंगाजल से स्नान कराकर, भोग लागायें और आरती उतारें।
भूत-प्रेत का भय समाप्त होता हैं। जिन्हे ड़रावने सपने आते हो उन्हे इस दिन पूजन अवश्य करना चाहिये। भूतबाधा-प्रेतबाधा नष्ट हो जाती हैं। मनोकामना सिद्ध होती हैं। शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती हैं। किसी के तन्त्र-मंत्र या अभिचार का प्रभाव नष्ट होता हैं। धन-समृद्धि व आयु में वृद्धि होती हैं। इस जन्म और पूर्व जन्म के अर्जित पापों से मुक्ति मिल जाती हैं।
भगवान वराह की प्रतिमा को गंगाजल से स्नान कराकर भोग लगावे तथा धूप, दीप, नैवेद्य, चन्दन से आरती उतारें ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान देवें। हिरण्याक्ष वध की कथा कहकर या सुनकर ब्राह्मण को भोजन करायें तथा दक्षिणा दें। इस दिन वराह स्त्रोत और वराह कवच का पाठ करना चाहिए। इस व्रत के प्रभाव से मनोवांछित फल मिलता है।
पौराणिक कथा के अनुसार महर्षि कश्यप की पत्नी दिति ने हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु नाम के दो पुत्रों को जन्म दिया। वो दोनों दैत्य थे और जन्म लेते ही उन्होने व्यस्क रूप ले लिया। उनके जन्म लेते ही सृष्टि मे अजीब सी हलचल होने लगी। हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु दोनों बहुत ही शक्तिशाली थे। और उन्होने भगवान ब्रह्माजी की तपस्या करके उन्हे प्रसन्न करके उनसे वरदान प्राप्त कर लिये थे।
ब्रहमाजी से वरदान पाकर वो दोनों निरन्कुश हो गयें। अपनी शक्ति के अभिमान में उन्होने भगवान और देवताओं का अपमान करना आरम्भ कर दिया। हिरण्याक्ष ने देवलोक पर आक्रमण करके उसे अपने अधीन कर लिया। फिर हिरण्याक्ष ने पृथ्वी को ले जाकर रसातल में छिपा दिया। ऐसा करने से सृष्टि में उथल-पुथल मच गयी। तब देवताओं ने भगवान विष्णु से सहायता माँगी।
तब भगवान विष्णु ने वाराह का रूप धारण करके पृथ्वी को अपने दांतों पर उठाकर रसातल से बाहर निकाला। और उसे अपनी कक्षा में स्थापित किया। यह देखकर हिरण्याक्ष क्रोध के मारे आग-बबूला हो उठा। उसने भगवान वाराह को युद्ध के लिये ललकारा। वाराह अवतार लिये भगवान विष्णु ने उस अहंकारी दैत्य को युद्ध में पराजित करके उसका वध कर दिया।
ऐसी मान्यता है कि हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु दोनों दैत्य भाई पूर्वजन्म में भगवान विष्णु के द्वारपाल थे, और एक ऋषि के शाप के कारण ही उन्हे दैत्य योनि मे जन्म लेना पड़ा। इसलिये उनके उद्धार के लिये भगवान विष्णु ने वाराह अवतार लिया और उन्हे दानव योनि से मुक्त किया।