भगवद गीता अध्याय 7, श्लोक 1

यह श्लोक भगवद गीता, अध्याय 7, श्लोक 1 से है। यह संस्कृत में लिखा गया है और हिंदी में इसका अनुवाद इस प्रकार है:

भगवान श्रीउवाच |
मय्यासक्तमना: पार्थ योगं युञ्जन्मदाश्रय: |
असंशयं समग्रं मां यथा ज्ञास्यसि तच्छृणु || 1||

हिंदी अनुवाद है:

"श्रीभगवान ने कहा: हे पार्थ! यदि तुम अपने मन को मुझमें आसक्त कर लो और मेरे आश्रय में रहकर योग का अभ्यास करो, तो तुम निःसंदेह मुझे संपूर्ण रूप से जान सकोगे। इसे सुनो।"

व्याख्या विस्तार से:

भगवान श्रीकृष्ण इस श्लोक में अर्जुन को ज्ञानयोग और भक्ति का मार्ग समझा रहे हैं। वे बताते हैं कि जब कोई साधक अपने मन को भगवान में पूरी तरह से स्थिर कर लेता है और उनके आश्रय में रहता है, तो वह ईश्वर को पूरी तरह से समझ सकता है।

संस्कृत शब्द का हिंदी में अर्थ:

  • श्रीभगवानुवाच - श्री भगवान बोले।
  • मय्यासक्त-मना: - मुझमें आसक्त मन वाला।
  • पार्थ: - हे अर्जुन!
  • योगं युञ्जन्: - योग का अभ्यास करता हुआ।
  • मदाश्रय: - मेरे आश्रय में।
  • असंशयम्: - बिना किसी संदेह के।
  • समग्रं मां: - संपूर्ण रूप से मुझे।
  • यथा ज्ञास्यसि: - जिस प्रकार जान सकेगा।
  • तच्छृणु: - उसे सुनो।



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