दक्षिण भारत के तमिलनाडु राज्य में कुंभकोणम के पास स्थित ऐरावतेश्वर मंदिर, एक अद्भुत हिंदू मंदिर है, जो द्रविड़ वास्तुकला का उत्कृष्ट नमूना है। यह मंदिर 12वीं सदी में महान चोल राजा, राजराजा चोल द्वितीय द्वारा बनवाया गया था। इसे तंजावुर के बृहदीश्वर मंदिर और गांगेयकोंडा चोलापुरम के गांगेयकोंडाचोलीश्वरम मंदिर के साथ यूनेस्को द्वारा "महान जीवंत चोल मंदिरों" की सूची में शामिल किया गया है।
ऐरावतेश्वर मंदिर कुंभकोणम क्षेत्र के उन अठारह महत्वपूर्ण मध्यकालीन हिंदू मंदिरों में से एक है, जो शिव को समर्पित हैं। यह मंदिर हिंदू धर्म की विभिन्न परंपराओं, जैसे वैष्णववाद, शक्तिवाद और शैव भक्ति आंदोलन से जुड़े नयनमार संतों की श्रद्धा को प्रदर्शित करता है।
इस मंदिर का मुख्य आकर्षण पत्थर से बनी रथ संरचना है, जिसमें वैदिक और पौराणिक देवताओं जैसे इंद्र, अग्नि, वरुण, वायु, ब्रह्मा, सूर्य, विष्णु, सप्तमातृकाएं, दुर्गा, सरस्वती, श्री देवी (लक्ष्मी), गंगा, यमुना, सुब्रह्मण्य, गणेश, कामदेव, रति और अन्य की मूर्तियाँ उकेरी गई हैं। मंदिर के उत्तर में स्थित एक अलग मंदिर है, जिसे पेरिया नायकी अम्मन मंदिर कहा जाता है, जो शिव की पत्नी को समर्पित है। माना जाता है कि बाहरी प्रांगण पूरा होने पर यह मुख्य मंदिर का हिस्सा रहा होगा, हालांकि वर्तमान में यह एक अलग मंदिर के रूप में स्थापित है।
मंदिर के कुछ हिस्से, जैसे गोपुरम (मुख्य द्वार), अब खंडहर में हैं, जबकि मुख्य मंदिर और उससे जुड़े अन्य मंदिर अब अकेले खड़े हैं। मंदिर में दो सूर्य घड़ियाँ हैं - एक सुबह की और दूसरी शाम की, जिन्हें रथ के पहियों के रूप में देखा जा सकता है। यह मंदिर प्रतिवर्ष माघ महीने में विशेष उत्सवों और अनुष्ठानों का आयोजन करता है, जिससे इसकी सांस्कृतिक और धार्मिक महत्ता बनी रहती है।
ऐरावतेश्वर मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। यहां शिव को ऐरावतेश्वर के नाम से जाना जाता है, क्योंकि मान्यता है कि इंद्र के सफेद हाथी ऐरावत ने इस मंदिर में भगवान शिव की पूजा की थी। पौराणिक कथा के अनुसार, ऐरावत ऋषि दुर्वासा के श्राप के कारण अपना रंग बदल जाने से दुखी था। उसने इस मंदिर के पवित्र जल में स्नान कर अपना वास्तविक रंग प्राप्त किया। मंदिर के भीतरी कक्ष में एक छवि है जिसमें ऐरावत पर इंद्र बैठे हैं, जो इस कथा का प्रतीक है।
इसके अलावा, कहा जाता है कि मृत्यु के देवता यमराज ने भी यहां शिव की पूजा की थी। परंपरा के अनुसार, यम किसी ऋषि के श्राप से उत्पन्न जलन से पीड़ित थे और ऐरावतेश्वर भगवान के आशीर्वाद से ठीक हो गए। उन्होंने मंदिर के पवित्र तालाब में स्नान किया और इस तालाब को "यमतीर्थम" के नाम से जाना जाने लगा।
यह मंदिर कला और वास्तुकला का खजाना है। मंदिर की प्रत्येक नक्काशी और निर्माण में चोल शिल्पकला की अद्वितीयता स्पष्ट दिखाई देती है। हालांकि यह मंदिर आकार में तंजावुर के बृहदीश्वर मंदिर और गांगेयकोंडाचोलीश्वरम मंदिर से छोटा है, लेकिन इसकी नक्काशी और डिजाइन अधिक जटिल और सुंदर है। कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण नित्य-विनोद यानी सतत मनोरंजन के लिए किया गया था।
मंदिर का मुख्य शिखर या विमाना लगभग 24 मीटर ऊंचा है। इसके सामने के मंडपम का दक्षिणी भाग पत्थर के विशाल रथ के रूप में बनाया गया है, जिसे घोड़ों द्वारा खींचता हुआ दिखाया गया है। मंदिर के आंगन में सुंदर नक्काशी वाले भवनों का समूह भी है, जिसमें गणेश जी की छवि वाले एक बलिपीठ का निर्माण किया गया है।
मंदिर के आंगन में स्थित सीढ़ियाँ भी अद्भुत हैं। इन सीढ़ियों पर विभिन्न संगीत ध्वनियाँ उत्पन्न होती हैं, जो चोल वास्तुकला के जादू को प्रदर्शित करती हैं।
ऐरावतेश्वर मंदिर में भगवान शिव के अलावा उनकी पत्नी पेरिया नायकी अम्मन का भी एक मंदिर है, जो मुख्य मंदिर के उत्तर में स्थित है। यह संभवतः मंदिर का ही हिस्सा रहा होगा, परंतु अब यह एक अलग मंदिर के रूप में खड़ा है।
मंदिर में अनेक शिलालेख भी मिलते हैं। इन शिलालेखों में चोल राजा कुलोतुंगा तृतीय द्वारा मंदिर का नवीकरण कराए जाने का उल्लेख है। इन शिलालेखों में 108 खंडों में शिवाचार्यों के नाम और उनके जीवन के मुख्य प्रसंगों को भी उकेरा गया है।
इस मंदिर को 2004 में यूनेस्को द्वारा "महान चोल जीवंत मंदिरों" की सूची में शामिल किया गया। इस सूची में ऐरावतेश्वर मंदिर के साथ तंजावुर का बृहदीश्वर मंदिर और गांगेयकोंडाचोलीश्वरम मंदिर भी हैं। इन सभी मंदिरों का निर्माण 10वीं और 12वीं शताब्दी के बीच चोल राजाओं द्वारा किया गया था। ये मंदिर न केवल वास्तुकला के उत्कृष्ट उदाहरण हैं, बल्कि ये चोल साम्राज्य के धार्मिक और सांस्कृतिक वैभव को भी दर्शाते हैं।
ऐरावतेश्वर मंदिर भारतीय संस्कृति, कला और वास्तुकला का एक अनमोल रत्न है। यह मंदिर न केवल द्रविड़ वास्तुकला की महानता को दर्शाता है, बल्कि इसके माध्यम से हमें उस समय की धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं की भी झलक मिलती है। तमिलनाडु के इस प्राचीन मंदिर का दर्शन करना एक अद्वितीय अनुभव है, जो इतिहास, धर्म और कला के अनूठे संगम को साकार करता है।