चाम्पॆयगौरार्धशरीरकायै कर्पूरगौरार्धशरीरकाय ।
धम्मिल्लकायै च जटाधराय नमः शिवायै च नमः शिवाय ॥ 1 ॥
कस्तूरिकाकुङ्कुमचर्चितायै चितारजःपुञ्ज विचर्चिताय ।
कृतस्मरायै विकृतस्मराय नमः शिवायै च नमः शिवाय ॥ 2 ॥
झणत्क्वणत्कङ्कणनूपुरायै पादाब्जराजत्फणिनूपुराय ।
हॆमाङ्गदायै भुजगाङ्गदाय नमः शिवायै च नमः शिवाय ॥ 3 ॥
विशालनीलॊत्पललॊचनायै विकासिपङ्कॆरुहलॊचनाय ।
समॆक्षणायै विषमॆक्षणाय नमः शिवायै च नमः शिवाय ॥ 4 ॥
मन्दारमालाकलितालकायै कपालमालाङ्कितकन्धराय ।
दिव्याम्बरायै च दिगम्बराय नमः शिवायै च नमः शिवाय ॥ 5 ॥
अम्भॊधरश्यामलकुन्तलायै तटित्प्रभाताम्रजटाधराय ।
निरीश्वरायै निखिलॆश्वराय नमः शिवायै च नमः शिवाय ॥ 6 ॥
प्रपञ्चसृष्ट्युन्मुखलास्यकायै समस्तसंहारकताण्डवाय ।
जगज्जनन्यै जगदॆकपित्रॆ नमः शिवायै च नमः शिवाय ॥ 7 ॥
प्रदीप्तरत्नॊज्ज्वलकुण्डलायै स्फुरन्महापन्नगभूषणाय ।
शिवान्वितायै च शिवान्विताय नमः शिवायै च नमः शिवाय ॥ 8 ॥
ऎतत्पठॆदष्टकमिष्टदं यॊ भक्त्या स मान्यॊ भुवि दीर्घजीवी ।
प्राप्नॊति सौभाग्यमनन्तकालं भूयात्सदा तस्य समस्तसिद्धिः ॥
श्री अर्धनारीश्वर स्तोत्र की रचना श्री आदि शंकराचार्य भगवत्पाद ने की थी। ये छंद भगवान अर्धनारीश्वर के दिव्य रूप का खूबसूरती से वर्णन करते हैं, जहां उनका आधा रूप देवी पार्वती का है, जो पुरुष और महिला ऊर्जा के मिलन का प्रतीक है, और दूसरा आधा भगवान शिव का है। यह आशीर्वाद, सुरक्षा और आध्यात्मिक प्राप्ति के लिए प्रार्थना है।
अर्धनारीश्वर स्तोत्र न केवल एक भक्ति भजन है बल्कि ब्रह्मांड में निहित एकता और संतुलन पर एक दार्शनिक प्रतिबिंब भी है। यह हमें जीवन के द्वंद्वों को पहचानने और उनमें सामंजस्य बिठाने का महत्व सिखाता है, जिससे अंततः आध्यात्मिक विकास और प्राप्ति होती है।
भगवान अर्धनारीश्वर के भक्त अक्सर अपने जीवन में संतुलन, सद्भाव और आध्यात्मिक विकास के लिए भगवान का आशीर्वाद पाने के लिए गहरी श्रद्धा के साथ इस स्तोत्र का पाठ करते हैं।