भगवद् गीता हिन्दू धर्म का प्रमुख ग्रंथ है। हिन्दूओं के सबसे प्रमुख ग्रंथों में भगवद् गीता का नाम आता है। भगवद् गीता में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा दिये गये उपदेश है। भगवान श्रीकृष्ण जो कि भगवान विष्णु के अवतार थे। भगवद् गीता हिन्दू के प्रसिद्ध ग्रंथ महाभारत का मुख्य हिस्सा है। महाभारत में पाडवों और कौरवों के बीच धर्म युद्ध हुआ था। तब पांडु के पुत्र अर्जुन ने युद्ध करने से मना कर दिया था। तब भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता के उपदेश दिये थे, ताकि अर्जुन ये धर्म युद्ध करें। श्रीकृष्ण द्वारा जो उपदेश अर्जुन को दिये थे, उन श्लोकों को ‘भगवद् गीता’ कहा जाता है। यह उपदेश भगवान श्रीकृष्ण ने कुरूक्षेत्र में दिये थे, इस स्थान पर महाभारत का युद्ध हुआ था, और आज भी इस स्थान पर भगवान श्रीकृष्ण को एक मंदिर है जो ज्योतिसर के नाम से प्रसिद्ध है।
भगवद् गीता में 18 अध्याय है, और 700 गीता के श्लोक है। ये सभी श्लोक संस्कृत भाषा में है। इन सभी श्लोकों में कर्म, धर्म, कर्मफल, जन्म, मृत्यु, सत्य और असत्य आदि जीवन से जुड़े सभी महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर है। जिस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने गीता के उपदेश दिये थे उस दिन को ‘गीता जयन्ती’ के नाम से प्रसिद्ध है। यह हिन्दूओं के लिए त्योहार की तरह होता है।
भगवद् गीता के 18 अध्यायों में विवरण विषयों की एक व्यवस्थित संगति भी है। जो इस प्रकार है:-
अध्याय प्रथम - कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में सैन्य निरीक्षण
अध्याय दो - गीता का सार
अध्याय तीन - कर्मयोग
अध्याय चार - दिव्य ज्ञान कर्म संन्यास योग
अध्याय पांच - कर्म संन्यास योग
अध्याय छः- आत्मसंयम योग या ध्यानयोग
अध्याय सात - संज्ञा ज्ञानविज्ञान योग या भगवद्ज्ञान योग
अध्याय आठ - संज्ञा अक्षर ब्रह्मयोग या भगवत्प्राप्ति योग
अध्याय नौं - राजगुह्योग यर परम गुह्य ज्ञान
अध्याय दस - विभूति योग, इसका सार यह है कि लोक में जितने देवता हैं, सब एक ही भगवान, की विभूतियाँ हैं
अध्याय ग्यारह - विराटरूप या विश्वरूपदर्शन
अध्याय बारह - भक्तियोग
अध्याय तेरह - प्रकृति, पुरुष तथा चेतना
अध्याय चैदह - गुणत्रय विभाग योग या प्रकृति के तीन गुण
अध्याय पन्द्रह - पुरुषोत्तम योग
अध्याय सोहल - देवी तथा आसुरी स्वभाव
अध्याय सत्रह - श्रद्धा के विभाग या संज्ञा श्रद्धात्रय विभाग योग
अध्याय अठारह - उपसंहार संन्यास की सिद्धि या संज्ञा मोक्षसंन्यास योग।
इस प्रकार भगवान ने जीवन के लिए व्यावहारिक मार्ग का उपदेश देकर अंत में यह कहा है कि मनुष्य को चाहिए, कि संसार के सब व्यवहारों का सच्चाई से पालन करते हुए, जो अखंड चैतन्य तत्व है, जिसे ईश्वर कहते हैं, जो प्रत्येक प्राणी के हृदय या केंद्र में विराजमान है, उसमें विश्वास रखे, उसका अनुभव करे। वही जीव की सत्ता है, वही चेतना है और वही सर्वोपरि आनंद का स्रोत है।
श्रीमद्भागवत गीता के पहले श्लोक का महत्व
धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे् समवेता युयुत्सवः।
मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत संजय ॥1॥
गीता हिंदी भावानुवाद-
धृतराष्ट्र ने कहा - संजय ! धर्म भूमि कुरुक्षेत्र में युद्ध की इच्छा से एकत्र हुए मेरे तथा पाण्डु के पुत्रों ने क्या किया?