![जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा 2024 जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा 2024](/img/jagannatha-rath-yatra-n.jpg)
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शिवपुराण के अनुसार, शंखचूड़ नाम का महापराक्रमी दैत्य हुआ, जो दैत्यराज दंभ का पुत्र था। दंभ ने कई वर्षों तक संतानहीनता की पीड़ा सही। उसने भगवान विष्णु की घोर तपस्या की, जिससे प्रसन्न होकर भगवान विष्णु प्रकट हुए और वरदान मांगने को कहा। दंभ ने तीनों लोकों में अजेय और महापराक्रमी पुत्र का वरदान मांगा। भगवान विष्णु ने तथास्तु कहा और अंतर्ध्यान हो गए। इसके बाद, दंभ के यहां एक पुत्र का जन्म हुआ, जिसका नाम शंखचूड़ रखा गया। शंखचूड़ दानव भगवान श्रीकृष्ण का मित्र सुदामा था, जिसे राधा ने दानवी योनि में जन्म लेने का शाप दिया था।
शंखचूड़ ने युवा होते ही पुष्कर में ब्रह्माजी की घोर तपस्या की। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी प्रकट हुए और वरदान मांगने को कहा। शंखचूड़ ने ब्रह्माजी से देवताओं के लिए अजेय होने का वरदान मांगा। ब्रह्माजी ने तथास्तु कहा और उसे श्रीकृष्णकवच प्रदान किया। इसके अलावा, ब्रह्माजी ने शंखचूड़ को धर्मध्वज की कन्या तुलसी से विवाह करने का आदेश दिया। ब्रह्माजी की आज्ञा का पालन करते हुए, शंखचूड़ ने तुलसी से विवाह किया।
ब्रह्मा और विष्णु के वरदान के कारण, शंखचूड़ अजेय हो गया और उसने तीनों लोकों पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया। देवता उसकी शक्तियों और अत्याचारों से त्रस्त हो गए और उन्होंने भगवान विष्णु से सहायता की याचना की। भगवान विष्णु ने स्वयं दंभ को ऐसा वरदान दिया था, इसलिए उन्होंने भगवान शिव से मदद की प्रार्थना की।
भगवान शिव ने देवताओं की प्रार्थना सुनकर शंखचूड़ के वध का निश्चय किया। उन्होंने शंखचूड़ के साथ युद्ध किया, लेकिन श्रीकृष्णकवच और तुलसी के पतिव्रता धर्म के कारण शंखचूड़ को मारने में असमर्थ रहे। तब भगवान विष्णु ने ब्राह्मण का रूप धारण कर शंखचूड़ से उसका श्रीकृष्णकवच दान में ले लिया। इसके बाद, भगवान विष्णु ने शंखचूड़ का रूप धारण कर तुलसी का शील हरण किया। इसके बाद, भगवान शिव ने शंखचूड़ को अपने त्रिशूल से मार डाला और उसकी हड्डियों से शंख उत्पन्न हुआ।
चूंकि शंखचूड़ विष्णु का भक्त था, इसलिए लक्ष्मी और विष्णु को शंख का जल अत्यंत प्रिय है। सभी देवताओं को शंख से जल चढ़ाने का विधान है। परंतु शिव ने शंखचूड़ का वध किया था, इसलिए शंख का जल शिव को अर्पित करना निषेध माना गया है। यही कारण है कि शिवजी की पूजा में शंख का प्रयोग नहीं किया जाता।
दैत्यराज शंखचूड़ की कहानी धार्मिक और पौराणिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस कथा से यह स्पष्ट होता है कि भगवान शिव की पूजा में शंख का प्रयोग क्यों वर्जित है और इसके पीछे की पौराणिक मान्यताएँ क्या हैं।