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महाभारत के युद्ध के 17वें दिन के पश्चात, जब पाण्डवों ने कर्ण को सूतपुत्र मानकर युद्ध में मारा, तो युधिष्ठिर को उसकी सच्चाई का पता युद्ध के बाद चला। माता कुन्ती ने तब अपने पुत्रों को बताया कि कर्ण वास्तव में उनका बड़ा भाई था, जो सूर्य और कुन्ती का पुत्र था। यह रहस्य जानकर पाण्डवों, विशेष रूप से युधिष्ठिर, को गहरा धक्का लगा।
युधिष्ठिर इस बात से अत्यंत दुखी और क्रोधित हुए कि उनकी माता ने इतना बड़ा रहस्य उनसे छुपाकर रखा। अगर यह सत्य पहले बताया गया होता, तो युद्ध टल सकता था, और भाई-भाई के बीच रक्तपात न होता। इस पीड़ा और क्रोध के प्रभाव में, युधिष्ठिर ने अपनी माता कुन्ती और समस्त नारी जाति को श्राप दिया।
युधिष्ठिर ने स्त्रियों की गुप्त रखने की क्षमता पर संदेह प्रकट किया और यह श्राप दिया कि:
"अब से नारी जाति कोई भी गुप्त बात या रहस्य छुपाने में सक्षम नहीं रहेगी।"
यह श्राप नारी जाति को दिया गया, लेकिन इसका उद्देश्य गहन पीड़ा और युद्ध के कारण उपजे आक्रोश को प्रकट करना था। यह घटना मानव जीवन के कई पहलुओं पर प्रकाश डालती है: